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स्थूलिभद्र मुनि - अहंकार बिना पूरी वास्तविकता कहूँ तो मेरे मन में एक बार भी ऐसा कोई विचार नहीं आया। इसे देवगुरु की कृपा का चमत्कार ही कह सकते है वर्ना मुझ में ऐसी ताकत कहाँ कि मैं अपने मन को नियंत्रित कर सकूँ। सिंह गुफा वासी मुनि - धन्य है आपको! मेरा मन तो कोशा को पहली नज़र में देखते ही चंचल हो गया था। ना तो उसके हाथ का बना भोजन मैंने खाया था और ना ही उसे नृत्यादि करते देखा था। परंतु मात्र एक दृष्टिपात से ही मेरे मन में विकारी भावनाओं का आगमन हो गया था। साज श्रृंगार से सजी, नृत्य आदि कलाओं को करती ऐसी रुप सुंदरी कोशा को सतत अपनी आँखों के समक्ष देख आप दृढ़ रहे यह अति दुर्लभ है। मैं यह जानना चाहता हूँ कि षड्रस भोजनकर तथा नृत्यादि देखकर भी आप निर्लेप कैसे रह सके? जब कोशा आती थी तब निर्विकारी रहने के लिए आप क्या अपनी आँखें बंद करके बैठते थे? आप ऐसा क्या चिंतन करते थे, जो आपको अपने लक्ष्य पर मजबूत रहने की शक्ति देता था ? स्थूलिभद्र मुनि - आगमगत जिनवाणी के अध्ययन से और पूज्य गुरु भगवंत की शुश्रूषा इन दोनों के प्रभाव से मैंने ऐसे अनेक विचारों (चिन्तन) का सहारा लिया। जिसके बल पर मैं कोयले की खान में जाकर भी बिना काले धब्बे बाहर निकल पाया। वे चिन्तन इस प्रकार है -
1. एक बार अब्रह्म के सेवन से दो से नौ लाख पंचेन्द्रिय जीवों की हिंसा होती है। अन्य कृमि आदि की गिनती तो अलग रही । ऐसी जिनवाणी है । अत: मुझे सावधान रहना है।
2. मुझे गुरु महाराज नज़र के सामने दिख रहे थे। उन्होंने मुझ पर दृढ़ विश्वास रखकर साधु के लिए बिल्कुल अनुचित स्थान पर चातुर्मास करने की अनुज्ञा दी। अब मुझे उनके विश्वास को अविचलित रखना
3. मेरी माँ का चेहरा मेरे सामने आ जाता मानो वे मुझे कहती थी कि मेरी यह कुक्षि रत्नकुक्षि के रुप में प्रसिद्ध बनें या कोयला कुक्षि के रुप में निंदनीय बनें, यह तुझ पर निर्भर करता है।
____ 4. अत: कोशा के चेहरे में मुझे कोशा नहीं मेरी माँ दिखाई देती थी, और जहाँ माँ का चेहरा हो. माँ का नाम हो, वहाँ काम कैसे हो सकता है ?
5. मानो मुझे मेरे स्वर्गस्थ पिताजी कान में कह रहे है कि “मैं एक सामान्य राजा की सेवा स्वीकारने के बाद सदा उनका वफादार रहा हूँ और मेरी वफादारी पर जब शंका के बादल मंडराने लगे। तब पूरे परिवार की रक्षा एवं अपनी वफादारी सिद्ध करने हेतु मैंने आत्महत्या कर ली, किंतु कलंक नहीं लगने दिया । तू मेरा पुत्र है, मेरे उज्जवल कुल-वंश को और ज्यादा उज्जवल करना तेरा काम है। दीक्षा लेने के बाद तुम तीन