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मनोवृत्ति चंचल हो गयी। पथभ्रष्ट बने मुनि ने कोशा से भोग की याचना की। कोशा ने पथभ्रष्ट मुनि को सही मार्ग पर लाने के लिए उससे देह के बदले द्रव्य माँगा। जब मुनि ने द्रव्य प्राप्ति का उपाय पूछा तब कोशा ने नेपाल के महाराजा के पास से रत्नकंबल ले आने का मार्ग बताया। वासना की गुलामी ने चातुर्मास में भी मुनि को नेपाल जाने के लिए मजबूर कर दिया। बड़ी कठिनाई से रत्नकंबल लाकर उन्होंने खुशी से कोशा को सौंपा।
कोशा ने कंबल के टुकड़े कर उससे पाँव पोंछ कर नाली में फेंक दिया। अपने श्रम का ऐसा फल देखकर मुनि क्रोधित हो उठे। तथा उन्होंने कहा "हे सुंदरी! इतने कष्ट से मैं यह कंबल लाया था। तुमने इसे इस प्रकार नाली में क्यों फेंक दिया?" तब उचित मौका देख कोशा ने पहले ही दासिओं द्वारा मंगवाए गए कई रत्न कंबल मुनि के सामने फेंकते हुए कहा – “देखो मुनिवर! ऐसे तो कई रत्नकंबल मेरे पास है। परंतु तुम्हारे पास जो चारित्र रुपी श्रेष्ठ रत्न है, वह तो देवों को भी दुर्लभ है। यह रत्नकंबल तो धोने से स्वच्छ हो जायेगा। परंतु चारित्र रुपी रत्न प्राप्त करने के बाद यदि आप अपनी आत्मा को वासना की गंदी नाली में फेंक दोंगे तो आपकी आत्मा को इस भव में तो क्या भवांतर में भी साफ करना मुश्किल होगा। आप व्यर्थ ही इस नश्वर काया के चंगुल में फँसकर दुर्गति की परंपरा से बंध रहे है। मुनिवर अब भी वक्त है संभल जाईए"।
कोशा के सदुपदेश भरे वचन को सुनकर मुनिवर की आत्मा जागृत हो गई। पश्चाताप की आग में जलते मुनि ने कोशा के पास माफी मांगी। वहाँ से गुरुदेव के पास जाकर आलोचना ली एवं स्थूलिभद्र मुनि से क्षमायाचना की। सर्व साधुओं के समक्ष उन्होंने कहा – “सर्व साधुओं में एक स्थूलिभद्र ही अति दुष्कर कार्य करने वाले है ऐसा जो गुरुदेव ने कहा था वह योग्य ही था। स्त्री विलास के रस को जानकर जो उनसे विरक्त बने वह वास्तव में महान है। ऐसे कामविजेता मुनि को मैं वंदन करता हूँ।" धन्य है ऐसे निर्विकारी महापुरुष को।
___ अन्य सारे सहवर्ती साधु भी वहाँ आ गए। तब सिंहगुफावासी मुनिवर ने स्थूलिभद्र मुनि से कहा"सचमुच आपकी मनोभूमिका को, आपकी दृढ़ता को धन्यवाद है। क्योंकि पूर्व में जिस स्त्री के साथ आपके संबंध इतने गाढ़ थे कि जिसके यहाँ आप बारह वर्षों तक रहे। उसके विचार मात्र को भी एक झटके में हटा देना, यह बहुत बड़ी आध्यात्मिक सिद्धि है। परंतु मुझे यह समझ में नहीं आया कि आपने कोशा के यहाँ चातुर्मास करने की आज्ञा क्यों मांगी? क्या उस वक्त आपको उसकी याद आ रही थी? स्थूलिभद्र मुनि - कोशा की याद से प्रेरित होकर मैंने ऐसा नहीं किया। कोशा के यहाँ चातुर्मास की अनुज्ञा मांगने में कई कारण थे।