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________________ सामान्य स्त्री की तरह कुछ धर्म पाने की भावना से मुनि स्थूलिभद्र के सामने आकर बैठ गई। लोहा गर्म हो गया है अब घात मारने में देरी नहीं करनी चाहिए ऐसा जानकर मुनि स्थूलिभद्र ने कहा "कोशा मैं बारह वर्षों तक तुम्हारे पास रहा। तुमने और मैंने क्या पाया? इस पर चिंतन करो। अनमोल ऐसा मानव जन्म मिला लेकिन काया के सुखों में, नीच कार्यों में आयुष्य के वर्षों-वर्ष व्यतीत कर दिये। खोया कितना? पाया कितना? क्या यह काया अमर है ? क्या सुखोपभोग से तृप्ति होती है? तुमने 12 वर्षों तक मेरे साथ सुखोपभोग किया? क्या तुम्हें तृप्ति हुई ? क्या यहाँ से नरकादि दुर्गतियों में भ्रमण करने जाना है ? नीचे गिरना है या ऊपर उठना है ? सुख दुःख की वास्तविक व्याख्या को समझो।" कोशा विचाराधीन हो गई। उसे मुनि के एक-एक वाक्य में सत्यता का अनुभव होने लगा। उसकी आत्मा पर से आसक्ति के पड़ल धीरे-धीरे हटने लगे। कुछ समय बाद उसने कहा - "हे महायोगी! मेरे अपराधों को क्षमा करो। आपके पवित्र परमाणुओं ने मेरे विकारों को भी शांत कर दिया है। आपकी निर्विकारिता के सामने मैं हार गई।'' मुनिवर ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा “कोशा तुम हारी नहीं जीत गई हो। तुम ही नहीं अपितु हम दोनों ही जीत गए हैं। काम विजय की अग्नि परीक्षा में मैं भी निश्चल रहा और साथ ही तुम्हारा चित्त भी अब निर्मल और विकार मुक्त होने लगा है यही तो मैं चाहता था'। तब कोशा ने कहा, "कृपानाथ! अब तो मुझे आपके चरणों में लेकर धर्म का ज्ञान प्रदान करें।" मुनि स्थूलिभद्रजी ने कहा - "हे कल्याणी! सभी के शरणदाता अरिहंत वीतराग प्रभु है। उन्हीं की चरण-शरण से तुम्हारा कल्याण होगा"। मुनि स्थूलिभद्र ने कोशा को श्रावक धर्म का तत्त्व समझाया। कुछ ही दिनों में वह श्रमणोपासिका बन गई तथा शेष चातुर्मास तत्त्वज्ञान को प्राप्त करने में पूर्ण किया। ___ चातुर्मास पूर्ण होते ही सिंह गुफावासी आदि तीनों मुनि अपने गुरुदेव के पास आए। मुनि संभूतिविजय ने तीनों को दुष्कर कहकर स्वागत किया। परंतु जैसे ही मुनि स्थूलिभद्र आए तब गुरुदेवश्री ने "दुष्कर महादुष्कर'' इस प्रकार कहते हुए सात कदम आगे आकर उनका स्वागत किया। यह देख स्थूलिभद्र मंत्री पुत्र है इसलिए गुरुदेव के हृदय में पक्षपात है। ऐसा सोच अन्य मुनि उनसे ईर्ष्या करने लगे। आठ महिनों बाद सिंहगुफा वासी मुनि, स्थूलिभद्र मुनि की होड़ करने के लिए कोशा की चित्रशाला में चातुर्मास हेतु अपने गुरुदेव के पास आज्ञा माँगने आए। गुरुदेव श्री समझ गए कि ईर्ष्यावश होकर यह आज्ञा माँग रहे है। उन्होंने मुनि को बहुत समझाया। परंतु गुरु आज्ञा की अवहेलना कर वह कोशा वेश्या के यहाँ चातुर्मास करने चले गए। वह गए तो थे स्थूलिभद्र मुनि की होड़ करने परंतु कोशा के अपूर्व सौन्दर्य को देखते ही उनकी
SR No.002438
Book TitleJainism Course Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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