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बताइहै ।
यात्रा
जो मे 'अइयारो"कओ, जो "मुझसे "अतिचार "लगा हो तस्स"खमासमणो! उन सबका, “हे क्षमाश्रमण !
पडिक्कमामि निंदामि,"गरिहामि मैं प्रतिक्रमण करता हूँ, निंदा करता हूँ, गुरु के समक्ष गर्दा करता हूँ 2 अप्पाणं "वोसिरामि॥ अशुभ योग में प्रवृत्त अपनी आत्मा का त्याग करता हूँ । वांदणा में शिष्य के प्रश्नात्मक छ: स्थान है एवं उनके उत्तर रुप गुरु के छ: वचन है। वे इस प्रकार है क्र. स्थान | शिष्यवचन स्थान का अर्थ गुरुवचन 1. | इच्छा इच्छामि खमासमणो वंदिउं| वंदन की इच्छा | छंदेणं
जावणिज्जाए निसीहिआए | बताई है । (वंदन करने की आज्ञा है) 2. | अनुज्ञा अणुजाणह मे मिउग्गहं वंदन की आज्ञा मांगी है । अणुजाणामि (अनुज्ञा है) | अव्याबाध | निसीहि अहो कायं .. से सुखाशाता पूछना तहत्ति (शाता है)
दिवसो वइक्कंतो तक
जत्ता भे? | संयम यात्रा (संबंधी पृच्छा तुब्भं पि वट्टए ? (प्रति पृच्छा) यापना जवणिज्जं च भे ? | देह संबंधी पृच्छा एवं (हाँ शाता है) अपराध खामेमि खमासमणो | दिवस संबंधी अपराध अहमवि खामेमि तुमं
| देवसिअ वइक्कमं..से की क्षमा याचना (मैं भी तुम्हें खमाता हूँ।) वोसिरामि तक .
9. सात लाख सूब भावार्थ : इस सूत्र में पृथ्वीकाय आदि जीवों की कुल 84 लाख योनि (उत्पत्ति स्थान)बताकर, उनमें से किसी भी जीव की विराधना हुई हो, तो उसका मिच्छामि दुक्कडम् मांगा गया है । सात लाख'पृथ्वीकाय, सचित्त मिट्टी, पाषाण आदि पृथ्वी के जीवों की योनि सात लाख है। 'सात लाख अप्काय, . 'सचित्त पानी, आकाश का पानी आदि अप्कायिक जीवों की योनि
'सात लाख है। 'सात लाख'तेउकाय, 'अङ्गारा, अग्नि, बिजली आदि अग्निकायिक जीवों की योनि सात
'लाख है,
खामणा