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'इच्छामि'खमासमणो! 'वंदिउं हे 'क्षमाश्रमण ! आपको सुखशाता पूछते हुए, 'जावणिजाए, निसीहिआए, अविनय आशातना की क्षमा मांगते हुए, 'मैं वंदन करना चाहता हूँ।
अणुजाणह मे 'मिउग्गहं, “मुझे 'अवग्रह में आने की आज्ञा प्रदान करों। "निसीहि
अशुभ व्यापारों के त्याग-पूर्वक "अ...हो, का...यं,"का...य-"संफासं "आपके चरणों को "अपनी काया द्वारा "स्पर्श करने से जो "खमणिज्जो "भे!"किलामो, आपको"खेद - कष्ट हुआ हो, उसकी मुझे "क्षमा प्रदान करे । अप्प"किलंताणं
अल्प "ग्लानिवाले "बहु-सुभेण"भे! "दिवसो वइक्कतो? हे "भगवन्!"आपका दिवस अत्यन्त सुखपूर्वक "व्यतीत हुआ ज...ता...भे?
आपकी "संयम यात्रा सुख - पूर्वक चल रही है? . "ज...व...णिज...जं...च भे? "आपकी इन्द्रियाँ और कषाय उपघात रहित है ? 'खामेमि'खमासमणो! हे 'क्षमाश्रमण! दिन में किए हुए . देवसिवइक्कम, 'अपराधों की 'मैं क्षमा माँगता हूँ, आवस्सिाए पडिक्कमामि।। "आवश्यक क्रिया के लिए अवग्रह से बाहर जाता हूँ। 'खमासमणाणं देवसिआए आप'क्षमाश्रमण की दिवस संबंधी, 1 आसायणाए, तित्तीसन्नयराए, तैतीस "आशातना में से, 'जंकिंचिमिच्छाए, 'जो कोई आशातना मिथ्या भाव से हुई हो,, 'मण-दुक्कडाए, वय-दुक्कडाए, . 'मन, वचन और काया की 'काय-'दुक्कडाए, 'दुष्ट प्रवृत्ति से हुई हो, 'कोहाए माणाए"मायाए"लोभाए, क्रोध, मान, "माया और "लोभ की वृत्ति से हुई हो, "सव्व-"कालियाए "सर्व "काल - संबंधी, “सव्व मिच्छोवयाराए, "सर्व प्रकार के "मिथ्या उपचारों से हुई हो, "सव्व-"धम्माइक्कमणाए, "सर्व प्रकार के "धर्म के अतिक्रमण से हुई हो, 1 आसायणाए,
उन आशातनाओं में