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अट्ठविहो होइ'नायव्वो।।4।। आठ प्रकार का 'जानने योग्य है। ।।4।। 'बारसविहंमि वितवे, 'जिनेश्वरों द्वारा कथित बाह्य और अभ्यंतर तप सन्भिन्तरे-बाहिरे 'कुसल-दिट्टे, 'बारह प्रकार का है। अगिलाइ-'अणाजीवी, ग्लानि रहित और आजीविका के हेतु बिना जो तप किया जाता है "नायव्वो सो तवायारो।।5। वह तपाचार "जानने योग्य है। ।।5।। *अणसण-मूणोअरिआ, अनशन और ऊणोदरि, 'वित्ति-संखेवणं रस-च्चाओ; वृत्ति-संक्षेप, रस-त्याग
काय किलेसो संलीणया'य, कष्ट सहन करना और शरीरादि का संकुचन करना, 'बज्झो तवो होइ।।6।। 'ये बाह्य तप है।।।6।। 'पायच्छित्तं "विणओ, *प्रायश्चित, विनय 'वेयावच्चं तहेव सज्झाओ; 'वैयावच्च (शुश्रूषा), स्वाध्याय,
झाणं उस्सग्गो विअ, ध्यान और 'त्याग (कायोत्सर्ग) 'अभिंतरओ तवो होइ ।।7।। 'ये अभ्यन्तर तप है। ।।7।। 'अणिगूहिअ-'बल-वीरिओ 'बल वीर्य को न छिपाते हुए, 'परक्कमइ जो जहुत्त माउत्तो। 'जो उपर्युक्त छत्तीस आचारों के पालन में 'पराक्रम करता है। 'मुंजइ अजहा-थाम, और यथाशक्ति अपनी आत्मा को (तप में) जोड़ता है, "नायव्यो "वीरियायारो ।।8।। वह वीर्याचार "कहलाता है।। ।।8।।
AAP 8. वांदगा (बृहद् गुरुवन्दन) सूत्र मदर भावार्थ : इस सूत्र में सद्गुरु को वंदन करके उनकी सेवा-वैयावृत्त्य में उनके प्रति लगे हुए दोषों की क्षमा माँगने में आती है । प्रतिक्रमण गुरुवंदनादि में दूसरी बार वन्दन करते समय “आवस्सिआए” यह पद नहीं बोलना चाहिए। “दिवसो वक्कंतो" के स्थान पर राई प्रतिक्रमण में “राई वइक्वंता' पक्खी प्रतिक्रमण में “पक्खो वइक्कंतो" चउ-मासी प्रतिक्रमण में “चउ-मासी वइक्कंता", और संवच्छरी प्रतिक्रमण में “संवच्छरो वइक्कंतो", इस प्रकार से पाठ बोलना चाहिए।