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''जो "खंडित हुआ हो, "विराधित हुआ हो,
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"उन सबका मेरा " दुष्कृत "मिथ्या हो । 7. नाणंमि सूत्र
भावार्थ :इन आठ गाथाओं में ज्ञानादि पाँच महान आचारों के भेदों का वर्णन हैं।
"जं "खंडियं, जं विराहियं
"तस्स "मिच्छामि "दुक्कड़
....
(नोट: इस सूत्र में जहाँ पर A, B, C ... आदि लिखे गये हैं। वह उन-उन आचारों के प्रकार हैं।) 'ज्ञान के विषय में, 'दर्शन के विषय में,
'नाणंमिदंसणंमि अ,
चरणंमितवंमि तहय वीरियंमि;
'आयरणं' आयारो,
'इअ एसो 'पंचहा " भणिओ || 1 || ऐसे आचार 'पाँच " प्रकार के है ।। 1 ।।
'काले विणए 'बहुमाणे, 'उवहाणे तह‘अनिन्हवणे,
काल (उचित समय में पढ़ना), विनय और 'बहुमान पूर्वक पढ़ना 'उपधान पूर्वक पढ़ना, तथा "अनिह्नवता (ज्ञान पढ़ाने वाले के विषय में अपलाप नहीं करना । )
"सूत्र, अर्थ और "दोनों (सूत्र + अर्थ ) शुद्ध एवं उपयोग पूर्वक पढ़ना इस प्रकार 'ज्ञानाचार के 'आठ प्रकार है ।। 2 ।।
^जिन धर्म में शंका नहीं करना, अन्य धर्म की इच्छा नहीं करना, 'धर्म के फल के विषय में शंका नहीं करना (श्रद्धा रखना) 'अन्य धर्म से प्रभावित होकर स्वधर्म से विचलित नहीं होना ।
स्वधर्म की महानता समझकर बार-बार धर्म की तथा धर्म करने वालों
की प्रशंसा करना, धर्म से विचलित होने वाले को धर्म में स्थिर करना,
'वच्छल्ल - "पभावणे 'अट्ठ | 13 || 'साधर्मिक से प्रेम करना, "ऐसा कार्य करे जिससे दूसरों को भी धर्म की प्रेरणा मिलें । इस प्रकार 'दर्शनाचार के आठ प्रकार है । ।। 3 ।। 'चित्त की 'समाधि' पूर्वक
पांच समिति और तीन गुप्तियों का पालन करना,
"इस प्रकार 'चारित्राचार
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"वंजण - "अत्थ- "तदुभए,
'अट्ठविहो 'नाणमायारो ॥12 ॥ ^निस्संकिय- 'निक्कंखिय, 'निव्वितिगिच्छा'अमूढदिट्ठी अ;
उववूह - थिरीकरणे,
चारित्र, 'तप तथा 'वीर्य के विषय में, " जो आचरने योग्य है वह 'आचार कहलाता है
पणिहाण - जोग - जुत्तो
F-H
A- पंचहिं समिईहिं तिहिं गुत्तीहिं;
'एस' चरित्तायारो,