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________________ 'दुच्चिट्ठिअ, "मिच्छामि"दुक्कड़ ।।1।।''दुष्ट चेष्टा की हो तो वे "मेरे सारे "दुष्कृत "मिथ्या हो । ___ 0 6 . देवलियं आलोउं सूत्र भावार्थ : इस सूत्र में अलग-अलग आचारों को आचरते हुए जो अतिचार लगा हो, उसका संक्षेप से प्रतिक्रमण करने में आता है। इच्छाकारेण संदिसह भगवन्! हे 'भगवन्! इच्छापूर्वक देवसि (राइयं) आलोउं ? *दिवस (रात्रि) संबंधी आलोचना करने की आज्ञा प्रदान करो। (गुरु कहे-आलोए) "इच्छं'आलोएमि आपकी आज्ञा स्वीकार कर 'मैं आलोचना करता हूँ। जो मे देवसिओ (राइओ) दिवस (रात्री) संबंधी मुझसे "जो "अइयारो "कओ, "अतिचार "लगा हो, "काइओ"वाइओ"माणसिओ, "काया के द्वारा, "वचन के द्वारा या "मन के द्वारा, "उस्सुत्तो"उम्मग्गो, "सूत्र के विरुद्ध, "मार्ग के विरुद्ध, "अकप्पो अकरणिजो, 18आचार के विरुद्ध या कर्तव्य के विरुद्ध. दुज्झाओ-'दुव्विचिंतिओ, दुष्ट ध्यान के द्वारा या 'दुष्ट चिंतन के द्वारा, अणायारो अणिच्छिअव्वो, . अनाचार के द्वारा, नहीं चाहने योग्य वर्तन के द्वारा, "असावग पाउग्गो, "श्रावक के लिए सर्वथा अनुचित ऐसे व्यवहार से, (जो अतिचार लगा हो) नाणे-"दंसणे-चरित्ताचरिते । ज्ञानाराधना, "दर्शनाराधना, देशविरति चारित्राराधना के विषय में "सुए- सामाइए। "श्रुतज्ञान ग्रहण या सामायिक के विषय में (जो अतिचार लगा हो) 'तिण्हं गुत्तीणं, "चउण्हं "कसायाणं, 'तीन गुप्तियों का, पंचण्ह-'मणुव्वयाणं, तिण्हं गुणव्वयाणं, 'पाँच अणुव्रतों का, तीन गुणव्रतों का, 'चउण्हं 'सिक्खावयाणं 'चार शिक्षाव्रतों का, 'बारसविहस्स "सावगधम्मस्स 'बारह प्रकार के "श्रावक धर्म का "चार "कषायों से
SR No.002438
Book TitleJainism Course Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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