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________________ 'वंदिया 'जिणवरा 'चउव्वीसं ; 'वंदन किए गए 'चौबीस 'जिनेश्वर भगवंत परमट्ट - 'निट्टिअट्ठा, (तथा) 'जो मोक्ष - सुख को प्राप्त हुए है, ऐसे (कृतकृत्य) 11. "सिद्धा "सिद्धिं मम "दिसंतु ।।5 || "सिद्ध भगवंत "मुझे "सिद्धि (मोक्ष) "प्रदान करें ।।5।। 13. वेयावच्चगराणं सूत्र भावार्थ : यह सूत्र वैयावृत्य करने वाले देवों का कायोत्सर्ग करने के लिए बोला जाता है। इस सूत्र को चारथुई वाले प्रतिक्रमण में बोलते है। 'वेयावच्चगराणं 'वैयावृत्त्य करने वालों के निमित्त से, संति-गराणं ' उपसर्गों की शांति करने वालों के निमित्त से, सम्म - दिट्ठि - 'समाहि-गराणं "सम्यग्-दृष्टियों के लिए 'समाधि उत्पन्न करने वालों के निमित्त से, 'करेमि 'काउस्सग्गं (अन्नत्थ. ) मैं 'कायोत्सर्ग 'करता हूँ । 4. भगवानहं सूत्र भावार्थ : : इस सूत्र से भगवान आदि को थोभ वंदन किया जाता है। 'भगवन्तों को, 'आचार्यों को 'उपाध्यायों को, 'सर्व साधुओं को (मैं वंदन करता हूँ।) 5. सव्वस्सवि सूत्र भावार्थ : इस सूत्र से प्रतिक्रमण ठाया जाता है .. यह सूत्र प्रतिक्रमण का बीज़ होने से इसमें संक्षिप्त में पापों की आलोचना की गई है। 'इच्छाकारेण 'संदिसह 'भगवन् ! 'देवसिअ 'पडिक्कमणे ठाउं ? 'भगवानहं, 'आचार्यहं, 'उपाध्यायहं, 'सर्वसाधुहं । 'इच्छं, " सव्वस्स वि 'देवसिअ 'दुच्चिंतिअ, "दुब्भासिअ हे 'भगवन् ! आप 'स्वेच्छा से 'देवसिक 'प्रतिक्रमण में 'स्थिर होने की 'आज्ञा प्रदान करे । (यहाँ गुरु कहे - ठावेह अर्थात् स्थिर बनो ।) 'आपकी आज्ञा स्वीकार करता हूँ । # दिन के मध्य में 'दुष्ट चिंतन किया हो, "दुष्ट भाषण किया हो 102
SR No.002438
Book TitleJainism Course Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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