SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ "सात लाख "वाउकाय, . 1 उद्भ्रामक, आदि वायुकायिक जीवों की योनि "सात "लाख हैं, "दश लाख प्रत्येक "वृक्ष, फल, फूल, पत्र आदि प्रत्येक “वनस्पतिकाय, "वनस्पतिकायिक जीवों की योनि "दस "लाख है। "चौदह लाख "जमीनकन्द, कोमलफल, पत्र, नीलफूल "साधारण"वनस्पतिकाय, आदि "साधारण वनस्पतिकायिक जीवों की योनि "चौदह लाख है। 'बे लाख'बेइन्द्रिय; 'शंख, छीप, आदि द्विन्द्रिय जीवों की योनि दो लाख है। 'बे लाख तेइन्द्रिय; 'कानखजूरा, जूं, कीड़ी आदि तेइन्द्रिय जीवों की योनि दो लाख है। 'बे लाख'चउरिन्द्रिय; 'बिच्छु, भँवरा, मक्खी आदि चार इन्द्रियवाले जीवों की योनि दो लाख है। "चार लाख"देवता, "देवों की योनि "चार "लाख है। "चार "लाख"नारकी, "नरक के जीवों की योनि “चार "लाख है, चार लाख"तिर्यंच "पंचेन्द्रिय, "पशु, पक्षी, मछली आदि पंचेन्द्रिय "तिर्यंच जीवों की योनि "चार "लाख हैं, "चौद लाख मनुष्य, मनुष्य जीवों की योनि "चौदह लाख हैं, 'एवंकारे चौराशी लाख 'इस प्रकार कुल चौराशी लाख 'जीवयोनिमाहि; 'जीवयोनियों के (जीवों में से) 'मारे जीवे 'जे कोई जीव मेरे जीव ने 'जो किसी जीव को "हण्यो होय,"हणाव्यो होय "मारा हो, 'मरवाया हो, "हणतां प्रत्ये "अनुमोद्यो होय और मारने वाले की "प्रशंसा की हो तो "ते"सवि" "मन, वचन "उन सभी "पाप का मैं "मन, वचन, "काया से "कायाए करीमिच्छामि "दुक्कडं । "मिच्छामि दुक्कडम् देता हूँ, उसको बुरा समझता हूँ। 10. पहले प्राणातिपात (18 पापस्थानक) सूत्र बदर भावार्थः इस सूत्र में अठारह प्रकार से जो पाप बंध होते हैं। उनके नाम और उस प्रकार से किए हुए पापों की क्षमा मांगने में आयी है । (मिथ्यादुष्कृत देने में आता है) 'पहले प्राणातिपात, 1. किसी भी जीव को मारना या मारने की इच्छा और विचार करना ।
SR No.002438
Book TitleJainism Course Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy