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* मुझे पढ़कर ही आगे बढ़े न
(सूत्रोच्चार में खास ध्यान रखने योग्य बातें ? )
सूत्र बोलते वक्त ध्यान में रखने योग्य बातें:
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पुक्खरवरदीवड्ढे सूत्र में 'पुक्खरवरदी वड्ढे' इस प्रकार न बोलकर “पुक्खरवर दीवड्ढे" इस
प्रकार बोले ।
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वंदित्तु सूत्र में 'जेण न निध्दंधसं' बोलना चाहिए 'जेणंन' इस प्रकार साथ में न बोले।
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अड्ढाईजेसु में दिवस मुद्देसु न बोलकर दीव समुद्देसु बोलना चाहिए अन्यथा द्वीप समुद्र का अर्थ बदलकर दिवस अर्थ हो जाता है।
* वांदणा सूत्र में मेमि ... उग्गहं न बोलकर मे मिउग्गहं बोलना चाहिए। इसी प्रकार बहुसु भेणभे न बोलकर बहुसुभेण .. भे बोलें अन्यथा अर्थ बदल जाता है।
* दिवसो वइक्कंतो? तथा ज... ता... भे ? ज... व... णिज्
प्रश्नात्मक होने से प्रश्न पूछ रहे हो इस प्रकार बोलें।
* सव्वसवि, सातलाख तथा पहले प्राणातिपात सूत्र में तस्स मिच्छामि दुक्कड़म् नहीं है परंतु मात्र
मिच्छामि दुक्कड़म् है।
जं. .....च... भे ? यह वाक्य
शुद्ध
तं धम्मचक्कवट्टि
अशुद्ध तमधम्मचक्कवहीणं
भगवान आचार्य....
भगवानहं, आचार्यहं
* प्राय: तो सूत्र के सामने शब्द के अनुसार अर्थ देने की कोशिश की है। लेकिन कहीं-कहीं अन्वय के अनुसार अर्थ दिया है। सूत्र पर जो नम्बर दिये गये है तदनुसार अर्थ के नम्बर देखने पर शब्दार्थ प्राप्त होंगे। तथा संलग्न अर्थ पढ़ेंगे तो आपको सहज गाथार्थ समझ में आ जाएगा।
अपने अंदर क्रोध न आए इसलिए क्या चिंतन करना ?
तुम्हारे पीछे कोई तुम्हारी निंदा करे, तुम्हें बदनाम करने का प्रयत्न करे तो उस समय यह सोचना कि कोई भी व्यक्ति मेरे स्वयं के पापोदय के बिना मेरी निंदा करेगा ही नहीं। ये तो निमित्त है, मेरे पापों का उदय है, इसलिए ही उसे मेरी निंदा करने का विचार आया। नहीं तो इसे इतने सारे लोगों में से मेरी ही निंदा करने का विचार क्यों आता? मूल में मेरा ही पापोदय है। ऐसा विचार करने से हम क्रोध-ध्यान से बच सकते हैं।
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