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VE 1. पुक्खर वर-दीवड्ते सूत्र (श्रुतस्तव) मा
भावार्थ : इस सूत्र में ढाई द्वीप में विचरने वाले तथा श्रुतज्ञान रुपी चक्षु के प्रदाता तीनों काल के तीर्थंकर भगवंतों को नमस्कार करके श्रुतज्ञान की स्तुति करने में आई है। 'पुक्खर-वर-दीवड्ढे; 'पुष्करवर द्वीप के अर्ध भाग में, 'धायइ-संडे अ जंबु-दीवे । धातकी खण्ड में व जम्बूद्वीप में (स्थित), 'भरहेरवयं-'विदेहे,
भरत ऐरावत 'महाविदेह (क्षेत्र) में, 'धम्माइ-गरे नमसामि।।1।। धर्म प्रारंभ करने वाले को मैं नमस्कार करता हूँ। ।।1।। 'तम-तिमिर- पडल-'विद्धं- 'अज्ञान रुपी अंधकार के समूह को नष्ट करने वाले, सणस्स-सुरगण- नरिंद-'महिअस्स; 'चार निकाय के देव समूह व राजाओं से 'पूजित . "सीमाधरस्स-"वंदे, "मोहजाल को अत्यन्त तोड़नेवाले 'पप्फोडिअ-मोहजालस्स ।।2।। "मर्यादा युक्त श्रुतधर्म को "मैं वंदन करता हूँ ।।2।। 'जाई जरा मरण सोगपणासणस्स, 'जन्म वृद्धावस्था मृत्यु व शोक का नाश करने वाला, 'कल्लाणं पुक्खल विसाल सुहावहस्स। पूर्ण 'कल्याण और बड़े सुख को देने वाला, . "को "देव"दाणव"नरिंद"गणच्चिअस्स, देवेन्द्रों, "दानवेन्द्रों और "नरेन्द्रों के समूह से पूजित
(ऐसे)
"धम्मस्स"सारमुवलब्भ करे"पमाय।।3।। "श्रुत धर्म का "सार प्राप्त करके "कौन "प्रमाद "करेगा? ।।3।। 'सिद्धे 'भो ! पयओ णमोजिणमए, हे सुज्ञ जनों! सिद्ध ऐसे जैन दर्शन को मैं आदर पूर्वक
'नमस्कार करता हूँ। नंदी'सया संजमे,
जो संयम मार्ग की 'सदा वृद्धि करने वाला है, 'देवं "नाग-"सुवन्न-"किन्नर-"गण; जो देव "नागकुमार, "सुपर्णकुमार, "किन्नर आदि के "समूह से "स्सब्भूअ-"भावऽच्चिए; "सच्चे "भाव से पूजित है। "लोगो "जत्थ'पइडिओ जगमिणं; "जिसमें "लोक(सकल पदार्थ) तथा "तीनों लोक के "तेलुक्क-"मच्चासुरं; "मनुष्य एवं (सुर) असुरादिक का आधार रुप "यह जगत