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सुशीला : क्या हुआ बेटा! बताओ तो सही? किसी ने तुम्हें कुछ कहा? मोक्षा : नहीं माँ! आपके मुँह से ये 'बेटा' शब्द सुनने के लिए ही मैं रो रही थी। मैं सोच रही थी कि जरुर मेरी सेवा में, मेरे प्रेम में ही कोई कमी आ रही है। जिसके कारण आपको मुझ पर बेटी जैसा प्रेम नहीं आ रहा है। पर आज आपने मुझे बेटी बुलाया.... । सुशीला : बेटा! मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हें बहुत दु:ख दिए, कठोर शब्दों को बोलकर मैंने तुम्हारे दिल के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। मुझे तुम्हें प्रेम देना था, लेकिन मैंने तुम्हारा तिरस्कार किया। मुझे तुमसे तुम्हारा पियर भूला देना था, लेकिन तुम्हारे साथ कर्कश व्यवहार कर सतत तुम्हें पियर की याद आने पर मजबूर किया। मुझे तुम्हारी मम्मी बनना था, लेकिन मैं तुम्हारे लिए एक चुडैल बन गई.... (सुशीला आगे कुछ बोले उसके पहले मोक्षा ने अपना हाथ सुशीला के मुंह पर रख दिया।) मोक्षा : नही माँ ! मुझे माफ कर दो। आपकी गुन्हेगार तो मैं हूँ। मुझे आपको खुश रखना था। उसके बदले मैंने आपको सतत चिंतित रखा। मुझे आपको सतत धर्म में जोड़ना था, लेकिन मैंने मात्र अपने ही धर्म की चिंता की। मम्मी! आप तो सच में महान हो।
. (इस प्रकार मोक्षा को ससुराल में अपनी माँ मिल गई और सुशीला को अपनी बेटी। इसके बाद तो घर का माहौल ही बदल गया। बदले हुए वातावरण में एक दिन सुशीला को ज्यूस देने के लिए मोक्षा तरबूज सुधारने लगी। सुशीला पास में बैठकर पुस्तक पढ़ रही थी। मोक्षा को सामायिक लेने में लेट हो रहा था, इसलिए वह जल्दी-जल्दी तरबूज को सुधारने लगी। इस जल्दबाजी के कारण चाकू से मोक्षा का हाथ कट गया। खून की धारा बहने लगी।) मोक्षा :- आऽऽऽऽ.इ... सुशीला : क्या हुआ बेटा? क्या हुआ? अरे खून! विधि, जल्दी से मल्हम-पट्टी लेकर आओ। बेटा, देखकर सुधारा करो। इतनी जल्दी क्या थी। देखो, कितना खून बह गया। मैं ज्यूस लेट पी लेती। (सुशीला ने मोक्षा के हाथों पर पट्टी बांधी।) सुशीला : बेटा, तुम सामायिक ले लो, ज्यूस मैं बना लूँगी। तुम बनाने जाओगी तो फिर सामायिक आते
आते तुम्हारे चउविहार का टाईम हो जाएगा। (मोक्षा सामायिक लेने चली गई, और इधर सुशीला ने मोक्षा के लिए गरम-गरम खाना बनाया। जैसे ही मोक्षा की सामायिक आयी। खाखरा और सुबह का बचा हुआ खाना खाने के लिए उसने रसोई घर में प्रवेश किया।)