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मोक्षा : हाँ मम्मीजी! इसमें हर उम्र के स्त्री-पुरुष भाग ले सकते हैं। सुशीला : तो मोक्षा! तुम आज ही मेरा फार्म भर देना। मोक्षा : हाँ मम्मीजी! बहुत अच्छा रहेगा। इससे आपका टाईम भी पास हो जाएगा और इतना ज्ञान भी मिलेगा। सुशीला : और हाँ मोक्षा! आज से मैं प्रतिदिन तुम्हारे साथ पूजा करने आऊँगी।
(इस प्रकार मोक्षा अपनी मम्मी के द्वारा प्राप्त हितशिक्षा को धीरे-धीरे अपने जीवन में अमल करने में सफल बन गई। थोड़े ही दिनों में सुशीला ठीक हो गई। एक दिन दोपहर में सुशीला अपने कमरे में रो रही थी तब -) प्रशांत : क्या बात है ? आज सबको रुलाने वाली स्वयं रो रही है? सुशीला : आप तो चुप ही रहिए , मैं रो रही हूँ और आपको मज़ाक सूझ रही है। प्रशांत : अच्छा बाबा! बताओ क्या सोचकर रो रही हो? सुशीला : वो ... मैं मोक्षा के बारे में सोच रही थी। प्रशांत : क्यों ! उसे और कोई दुःख देना बाकी है क्या? सुशीला : आप फिर बोले। प्रशांत : मैं तो मज़ाक कर रहा था । बताओ, तुम मोक्षा के बारे में क्या सोच रही हो? सुशीला : मुझे सचमुच अपने किए पर पश्चाताप हो रहा है। मैंने उसे कितने दुःख दिये और वह आज मेरी इतनी सेवा कर रही है। बस, अब मैं उससे माफी मांगना चाहती हूँ। प्रशांत : अरे भाग्यवान! नेकी और पूछ-पूछ। शुभ काम में देरी नहीं करनी चाहिए। चलो, अभी हम मोक्षा के कमरे में चलते हैं।
(दोनों मोक्षा के कमरे में पहुँचे। मोक्षा उस समय सो रही थी। सुशीला ने उसके पास जाकर देखा कि मोक्षा शांति से सो रही थी। लेकिन उसके गालों पर सूके हुए अश्रुधारा के निशान देखकर सुशीला ने सोचा कि मेरी बहू की इस घर में ऐसी हालत? और उसने अपना हाथ मोक्षा के सिर पर फेरा। इससे मोक्षा जाग गई।) सुशीला : अरे बेटा! तुम रो रही थी क्या हुआ? (मोक्षा और जोर से रोती हुई सुशीला के गले लग गई। सुशीला ने भी वात्सल्य भरा हाथ उसके सिर पर फेरते हुए कहा - )