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सुशीला : मन तो नहीं है फिर भी तुम कह रही हो तो चलो ले लेती हूँ । टाईम भी पास हो जाएगा।
(सामायिक में मोक्षा ने सुशीला को जैनिज़म के पहले खंड में रहे हुए आहार शुद्धि का विषय समझाया। कंदमूल में इतने जीव होते हैं, यह जानकर तो सुशीला की आत्मा काँप उठी। मोक्षा ने सुशीला को इस भव एवं अगले भव में कंदमूल खाने के दुष्परिणामों के बारे में बताया । तथा उससे संबंधित दृष्टांत भी सुशीला को सुनाये। कंदमूल खाने के बाद होने वाले भयंकर परिणामों को जानकर सुशीला ने उस दिन से आजीवन कंदमूल नहीं खाने का निश्चय कर लिया। उस दिन सुशीला को सामायिक में इतना आनंद आया कि उसने अनुकूलता अनुसार नित्य एक सामायिक करने का निर्णय कर लिया और जब यह बात मोक्षा को बताई । तब ... )
मोक्षा : मम्मीजी! यह तो बहुत अच्छी बात है। मैं भी कई दिनों से कहने का सोच ही रही थी कि आपने इतने सालों तक इस घर की सेवा की, इस घर को सम्भाला | अब आप घर की सारी चिंताओं से मुक्त होकर धर्म आराधना करें।
सुशीला : पर मोक्षा! मुझे तो कुछ आता ही नहीं है।
मोक्षा : कोई बात नहीं मम्मी ! मैं हूँ ना आपके साथ। मैं रोज आपके साथ सामायिक, प्रतिक्रमणादि करुँगी । बाकी समय में मैं आपको अच्छी-अच्छी पुस्तकें दूँगी। वे पढ़कर आपको काफी ज्ञान मिल जायेगा और आगे भी धर्म करने की रुचि पैदा होगी।
सुशीला : ठीक है बेटा! (दूसरे दिन )
मोक्षा : मम्मी! डॉ. ने वैसे भी अब आपको थोड़ी वॉकिंग करने को कहा है तो आप एक काम कीजिए। मेरे साथ मंदिर आ जाइए तो वॉकिंग की वॉकिंग भी हो जायेगी और प्रभु के दर्शन और पूजा भी हो जायेगी। सुशीला : अच्छी बात है ।
(दोनों साथ में मंदिर गये, मंदिर में मोक्षा ने सुशीला को प्रभु पूजा की विधि बताई तथा उसके फल के बारे में बताया। चैत्यवंदन में मोक्षा ने एक सुंदर स्तवन गाया । जिसे सुनकर सुशीला भाव-विभोर हो गई और घर आते समय रास्ते में.... .).
सुशीला : मोक्षा तुमने ये सब कहाँ से सीखा ?
मोक्षा : मम्मीजी ! प.पू. विदुषी सा. श्री मणिप्रभाश्रीजी के द्वारा रचित जैनिज़म कोर्स से मुझे इतना ज्ञान प्राप्त हुआ है।
सुशीला : मोक्षा ! क्या ये कोर्स, मैं भी कर सकती हूँ?