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सुशीला : विवेक! मेरे काम के लिए थोड़े दिन किसी बाई को रख दो। मोक्षा : क्यों मम्मीजी! बाई की क्या जरुरत है ? मैं हूँ ना, मुझे आपकी सेवा का मौका कब मिलेगा? मैं सब कर लूँगी। प्रशांत : बेटा! इसका काम, घर का सारा काम और मेहमानों को भी संभालना, सब तुम अकेली कैसे करोगी? मोक्षा : पिताजी! आप चिंता मत कीजिए। मैं जल्दी उठकर सब कुछ संभाल लूँगी। फिर भी मेरा पहला लक्ष्य होगा मम्मीजी की सेवा। यदि मुझसे नहीं होगा तो मैं आपको कह दूँगी। प्रशांत : ठीक है बेटा! जैसी तुम्हारी मर्जी, जरुरत पड़े तो सुशीला को तो विधि भी संभाल लेगी। विधि : प्लीज़ डेड! वैसे भी मेरी परीक्षा के दिन नज़दीक आ रहे हैं और ये मॉम को साफ-वाफ करने का काम मुझसे नहीं होगा। मोक्षा : पापा ! आप निश्चित रहिए, सब ठीक हो जाएगा। (मोक्षा और विधि के विचारों को जानकर सुशीला को पहली बार मोक्षा पर अपनी बेटी जैसा प्रेम आने लगा। मोक्षा भी दिल लगाकर अपने सास की सेवा करने लगी, सुशीला भी कोई भी काम हो तो सहजता से मोक्षा को कहने लगी। मोक्षा और सुशीला अब मन की बातें एक दूसरे को कहने लगे। इस प्रकार सास व बहू में कुछ नज़दीकियाँ बढ़ने लगी।)
___ मोक्षा द्वारा किए गए प्रेम पूर्ण व्यवहार ने सुशीला के आक्रोश को प्रेम में बदल दिया, क्योंकि मोक्षा को अपनी माँ से यही हितशिक्षा मिली थी कि बाह्य समग्र प्रतिकूलताओं को दूर करने की ताकत जो पैसे में है तो अभ्यन्तर समस्त प्रतिकूलताओं को दूर करने की ताकत प्रेम में है।
इस प्रकार प्रेम भरे वातावरण में सात दिन कैसे बीत गये, पता ही नहीं चला। आठवें दिन सुशीला का प्लास्टर निकल गया। डॉ. ने मालिश करने को कहा। मोक्षा ने इस सेवा को भी सहर्ष स्वीकार कर लिया
और मन लगाकर तीनों वक्त सुशीला के पैर की मालिश करने लगी। एक दिन मोक्षा सुशीला की दोपहर में मालिश कर रही थी तब ....) सुशीला : मोक्षा! आज तो मैं पूरे दिन बोर हो जाऊँगी। आज पूरे दिन करेंट नहीं आने वाला है। अब दोपहर में टाईम पास कैसे होगा, पता नहीं? मोक्षा : मम्मीजी! एक काम कीजिए ना। मैं वैसे भी अभी सामायिक लेने वाली हूँ। आप भी मेरे साथ ले लीजिए।