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बनाती है। प्रशांत : भाग्यवान। यही प्रशंसा मोक्षा के सामने की होती तो वह कितनी खुश हो जाती। सुशीला : आप तो चुप ही रहिए। मुझे क्या करना है और क्या नहीं यह मुझे पता है।
(वहाँ से सब खाना खाने बैठे। मोक्षा ने खाना परोसा।) प्रशांत : वाह बेटा! आज तो बहुत बढ़िया खाना बनाया है तुमने। तुम्हें कैसे पता चला कि ये तुम्हारी सासुमाँ की मनपसंद आईटम है। विधि : पापा! भाभी ने मुझसे पूछा था।
(दो-तीन दिन ऐसे ही गुज़र गये और एक दिन विधि एवं सुशीला खरीदी करने के लिए बाहर गये। अचानक एक कार से धक्का लगने के कारण सुशीला गिर गई और उसके पैर में फेक्चर हो गया। विधि सुशीला को डॉक्टर के पास ले गई और घर पर भी अपनी भाभी को फोन करके सारी बात बतायी। मोक्षा विवेक के साथ अस्पताल पहुँची तब तक सुशीला के पैर पर 7 दिन का प्लास्टर लग गया था। डॉक्टर ने सुशीला को बेडरेस्ट करने को कहा। तीनों सुशीला को घर लेकर आये। बेडरेस्ट होने के कारण सुशीला का खाना-पीना, लेट्रीन, बाथरुम सब बेड पर ही होता था। मोक्षा दिल लगाकर अपनी सासुमाँ की सेवा करने लगी। उन्हें समय-समय पर खाना खिलाना, पानी पिलाना, कुछ जरुरत हो तो लाकर देना आदि सारी जिम्मेदारियों को अपने सिर पर उठा लिया था और एक दिन ...) सुशीला : विधि बेटा मुझे साफ कर दो। विधि : सॉरी मॉम! मुझ से ये काम नहीं होगा। रुको, मैं भाभी को बुलाती हूँ। (विधि बाहर गई और उसने मोक्षा से कहा-) विधि : भाभी! मॉम आपको बुला रही है। (ऐसा कहकर वह अपने रुम में चली गई।) मोक्षा : मम्मीजी! आपने मुझे बुलाया। सुशीला : मोक्षा! वो.....वो..... मोक्षा : क्या हुआ मम्मीजी'कुछ दर्द हो रहा है? डॉक्टर को बुलाना है क्या? सुशीला : नहीं मोक्षा! वो मुझे थोड़ा साफ करना था। मोक्षा : अरे! इतनी-सी बात है, मैं अभी दूसरे कपड़े व पानी लेकर आती हूँ।
(मोक्षा ने कुछ भी कहे बिना सुशीला को साफ कर दिया। शाम के वक्त जब परिवार के सारे सदस्य इकट्ठे हुए तब-)