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सुशीला : मोक्षा! आओ खाना खा लो। मोक्षा : अरे मम्मी! आप खाना बना रही हो, मैं तो सुबह का ही खा लेती। सुशीला : कोई जरुरत नहीं है अब से सुबह का खाना खाने की। आज से रोज मैं तुम्हारे लिए खाना बनाऊँगी। (सुशीला ने मोक्षा को खाना परोसा। मोक्षा के दायें हाथ में चीरा आने के कारण व पट्टी बंधी हुई होने के कारण वह उल्टे हाथ से रोटी तोड़ने लगी। लेकिन वह रोटी तोड़ नहीं पाई।) सुशीला : क्या हुआ बेटा! खाना क्यों नहीं खा रही हो? मोक्षा : मम्मी! रोटी टूट नहीं रही है। आप मुझे रोटी का चूरा करके दे दो। सुशीला : अरे बेटा! चूरे की क्या जरुरत है। मैं ही तुम्हें अपने हाथ से खिला देती हूँ। मोक्षा : मम्मी! आपके हाथ से तो मैं तब ही खाऊँगी जब आप भी मेरे साथ खाना शुरू करेंगे। (सुशीला कुछ नहीं कहती) मोक्षा : मम्मी! इसमें इतना सोचने की क्या बात है ? अब तो आपको इतना ज्ञान मिल गया है। रात्रिभोजन के दुष्परिणामों के बारे में भी आप जानते हो। यदि आप रात्रिभोजन त्याग करेंगे तो मुझे भी कंपनी मिल जाएगी। सुशीला : ठीक है बेटा! तुम्हारी खुशी के लिए मैं रात्रिभोजन छोड़ती हूँ। . (इस प्रकार मोक्षा ने अपने प्रेमपूर्ण व्यवहार से पूरे घर को सुधारकर परिवार के सारे सदस्यों को धर्म में जोड़ दिया। अब उनके घर में रात्रिभोजन और कंदमूल बंद हो गया और नित्य जिन पूजा शुरू हो गई।)
मोक्षा ने अपनी माँ की हितशिक्षा और अपने विनय-विवेक से सारे घर को प्रेममय वातावरण के एक सूत्र में बाँध दिया। उसके हँसते-खेलते परिवार में और एक हँसी-खुशी का माहौल बना, जब मोक्षा ने गर्भधारण किया। इस हालत में सास-ससुर, विवेक, देवर, ननंद सब मोक्षा का बहुत ध्यान रखते। उसकी हर एक इच्छा पूरी करते। मोक्षा भी अपनी माँ की हितशिक्षा अनुसार गर्भ का अच्छी प्रकार पालन करती।
अपनी माँ से प्राप्त हितशिक्षा को जीवन में उतारने के कारण मोक्षा के जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ थी। इस तरफ जयणा के बेटे मोहित की शादी सुसंस्कारित एवं अच्छे खानदान की लड़की दिव्या के साथ हो गई। समय व्यतीत होने पर दिव्या ने गर्भ धारण किया। गर्भ से लेकर आज तक संस्कारों की छाया में पलीबड़ी मोक्षा के सुखी जीवन से दिव्या परिचित ही थी, अत: वह भी अपनी संतान को ऐसे ही संस्कार देना चाहती थी, परंतु इन संस्कारों की जड़ के रूप में गर्भ संस्करण के ज्ञान से वह अपरिचित थी। क्या वह अपने मन में रहे प्रश्नों का समाधान अपनी सासुमाँ जयणा से कर पाती है ? जयणा क्या समाधान देती है ? देखते है जैनिज़म के अगले खंड “संस्कारों की नींव' में ...