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जीतना था और उन्हें भी धर्म के मार्ग पर ले जाना था। लेकिन तुमने सिर्फ अपने धर्म को ही टिकाकर रखना जरुरी समझा और इस कारण तुम अपनी सास के दिल से बहुत दूर हो गई। बेटा, बहू को तो अपनी सास को जिम्मेदारियों से मुक्त करके धर्माराधना में अनुकूलता करके देनी चाहिए। जिससे तुम्हारी सास जो भी धर्माराधना करेगी उसमें तुम भागीदार बनोगी “करन, करावन ने अनुमोदन सरखा फल निपजायो रे ..." शायद संयुक्त परिवार में रहकर तुम मन चाहो उतनी धर्माराधना नहीं कर सकोगी, परंतु सास को करवाकर लाभ तो ले सकती हो और साथ ही तुम्हें भी धर्माराधना में अनुकूलता मिलती रहेगी। मोक्षा : पर माँ! आप तो जानती ही है कि मेरी सासुमाँ कितनी नास्तिक है। अब मैं उन्हें धर्म में कैसे जोड़ें? अभी तो वे मुझसे इतनी नाराज़ है कि यदि मैं उन्हें कुछ भी कहुँगी तो वे मानने के लिए तैयार ही नहीं होगी? जयणा : इसके लिए तुम्हें अपनी सासुमाँ का दिल जितना होगा। मोक्षा : पर माँ कैसे? जयणा : बेटा! गुरुकुल में पढ़कर तुमने कितनी कलाएँ सीखी है और उसमें भी तुम तो चित्रकला, संगीतकला में निपुण हो। अपनी सास का अच्छा चित्र बनाकर, उन पर अच्छी शायरी या गीत बनाकर उन्हें सुनाओ, उनकी प्रशंसा करो, उनके पास जाकर बैठो, उन्हें अपने दिल की बात कहो, उन्हें कोई तकलीफ तो नहीं है, इस बारे में पूछो। बेटा, मैं तो यही मानती हूँ कि कुआँ खोदने वाले को शायद पानी मिले या न मिले, परंतु सामने वाले के प्रति प्रेमपूर्ण बर्ताव करने से हमें प्रेम का अनुभव न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। तुम एक बार प्रयत्न करके देखो...सफलता तुम्हारे पैर छूएंगी। बेटा! एक बात का ध्यान रखना कि विवेक को धर्ममय वातावरण में आगे बढ़ाने के लिए व धर्म करने के लिए कभी जोर-जबरदस्ती या धमकियों का इस्तेमाल मत करना। बल्कि उसे भी अपनी चित्रकला, संगीतकला आदि से खुश करके प्रेम से धर्म में जोड़ना, थोड़ी धीरज रखना, सब ठीक होकर ही रहेगा। मोक्षा : ठीक है माँ! मैं ससुराल जाकर जल्दी ही आपको शुभ समाचार देती हूँ।
(आजकल की धार्मिक पत्नियाँ सोचती है कि मैं यदि धार्मिक हूँ तो मेरे पति भी धार्मिक बने। यहाँ तक की सोच तो फिर भी ठीक है, परंतु वह अपने पति को धर्म में जोड़ने के लिए धमकियाँ व जबरदस्ती का उपयोग करती है जैसे कि यदि आप मंदिर नहीं जाएंगे तो आपको चाय नहीं मिलेगी। उठिये पहले मंदिर जाकर आइए। इस प्रकार की धमकियों से वह अपने पति को धर्म में जोड़ तो लेती है लेकिन वह धर्म दीर्घकाल तक टिक नहीं पाता। इसके बदले उन्हें खुश करके प्रेम से उनके मन में धर्म के प्रति अहोभाव पैदा करवाकर उनसे धर्म करवाना चाहिए। जिससे वह धर्म दीर्घकाल तक टिका रहे। इस प्रकार मोक्षा को अपने मन की सारी शंकाओं का समाधान अपनी माँ से मिल गया। वैसे तो बहू को अपने ससुराल की छोटी-मोटी