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________________ रही हूँ। हाँ, कल जाकर तुम सास बनोगी और तुम्हारी बहू से तुम्हारी कुछ अन-बन हो जाएगी तब मैं तुम्हें सास के कर्तव्य भी जरुर समझाऊँगी। रही सास को अपना दिमाग ठिकाने लाने की बात तो बेटा। अपनी सास को सुधारने के लिए पहले तुम्हें ही सुधरना पड़ेगा। अब रही बात तुम्हारे स्वास्थ्य की तो उसे तो प्रेम से दूसरों का दिल जीतकर सुलझाया जा सकता है, और परिवार में प्रेम कैसे देना वह मैं तुम्हें सिखाऊँगी। मोक्षा : क्यों माँ ? सहन करने की बात हो या कर्तव्य की बात, फर्ज अदा करने की बात हो या सुधरने की बात, सब कार्य पहले बहू से ही क्यों शुरू होते है? मेरी सास सुधर जाएँगी तो मेरा स्वभाव स्वयं ही सुधर जाएगा, इसलिए मेरा तो यही मानना है कि माँ, पहले मुझे नहीं मेरी सास को ही सुधरना चाहिए। जयणा : तुम्हारी सास तुम्हारे साथ अच्छा बर्ताव करें तो ही तुम भी उनके साथ अच्छा बर्ताव करोगी। तुम्हारी इस सोच के अनुसार तुम्हारा बर्ताव, तुम्हारा स्वभाव कैसा होना चाहिए? यह तुम्हारे हाथ में नहीं बल्कि तुम्हारे सास के हाथ में है। यदि वे तुमसे अच्छा बर्ताव करें तो तुम्हारा बर्ताव अच्छा और वे तुमसे बुरा बर्ताव करें तो तुम्हारा बर्ताव बुरा होगा। यदि तुम्हें ऐसा ही स्वभाव रखना है तो तुम्हारे घर में अशांति, क्लेश, झगड़े हो इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। बेटा! यह तो तुम्हारे हाथ में है कि तुम क्रोध के आगे अधिक क्रोध दिखाकर उनसे जीत जाओ या फिर क्रोध के आगे प्रेम दिखाकर तुम उनका दिल जीत लो। बाज़ी तुम्हारे हाथ में है। चयन तुम्हें करना हैं बेटा। तुम जो सुधरने और सहन करने में पहले बहू को ही क्यों करना यह पूछ रही थी ना? तो इसका जवाब यह है कि तुमने कच्चा घड़ा तो देखा ही होगा। कुंभार उस घड़े को जैसा आकार देना चाहे वह दे सकता है। लेकिन वही घड़ा जब पक्का बन जाए तब उसके आकार को यदि कुंभार बदलना चाहे तो घड़ा टूट जाता है लेकिन बदलता नहीं। ठीक वैसे ही वृद्धावस्था होती है पक्के घड़े जैसी और युवावस्था होती है कच्चे घड़े जैसी, तो फिर सुधरने और सहन करने की सलाह बह को ही दी जाए इसमें भला आश्चर्य कैसा? तुम्हारी सास का स्वभाव 50 साल से वैसा ही है तुम उस घर में नई गई हो तो तुम अपने स्वभाव को बदलने की कोशिश करो। मोक्षा : यदि माँ, मैं आपकी इस सोच के अनुसार चलूँ और संयुक्त परिवार में ही रहूँ तो एक और समस्या खड़ी हो जाती है। एक तरफ परिवार है तो एक तरफ धर्म। आपके कहे अनुसार उनके स्वभाव के अनुकूल बनने के लिए यदि मैं रात्रिभोजन करना शुरू कर दूँ तो मेरा धर्म छूट जाता है और यदि मैं अपने धर्म पर टिकी रहूँ तो आये दिन नये झगड़े होने के कारण आपसी प्रेम टूट जाता है। अब आप ही बताईए मैं किसके पक्ष में जाऊँ ? धर्म के पक्ष में या परिवार के पक्ष में ? यदि मैं धर्म का ही पक्ष लूँ तो क्या मुझे जिंदगी भर सुबह का ठंडा भोजन ही खाना पड़ेगा? जयणा : मोक्षा! यही तो तुमने बहुत बड़ी गलती की है। सबसे पहले तो तुम्हें अपनी सासुमाँ का दिल
SR No.002438
Book TitleJainism Course Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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