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________________ आपकी ऐसी अवस्था कैसे हुई।'' पिता ने कहा – “पुत्र! तेरे जाने से धन भी चला गया और तेरा भाई भी मरण शैय्या पर है। तुम्हारे घर से जाने के बाद मेरे डर से हंस रात में खाने बैठा और भयंकर सर्प के विष से बेहोश सा हो गया है। एक दिन एक ज्योतिषी ने कहा, विषहरण सिद्ध योगी ही यह ज़हर नाश करने में समर्थ बनेगा। ऐसे योगी की खोज में आज मैं इधर आया हूँ। आज उसका अन्तिम दिन है।" यह सुनते ही केशव नमस्कार मंत्र और यक्षराज का स्मरण करके एक ही मिनिट में कुंडिनपुर पहुंच गया। वहाँ अपने भैया हंस के ऊपर पानी छिटककर, उसे रोग से मुक्त किया। उसी दिन नगर के अनेक भाविकजनों ने रात्रि भोजन का त्याग किया (व्रत ग्रहण किया)। राजा केशव जैन धर्म की प्रभावना करते हुए, बारह व्रतो एवं विशाल राज्य ऋद्धि का पालन करते हुए स्वर्ग में गये। आगे मोक्ष प्राप्त करेंगे। धन्य जीवन, धन्य व्रत, धन्य मृत्यु। प्रिय वाचकों, रात्रि भोजन से नुकसान और त्याग से लाभ इत्यादि समझ कर अवश्य रात्रि भोजन का त्याग करें। MO समरो मंत्र भलो नवकार 1. देव बना बंदर पहले देवलोक में हेमप्रभ नामक एक देव था। एक दिन उसने आने वाले भव में उसे धर्म की प्राप्ति होगी या नहीं इस विषय में केवलज्ञानी मुनि को पूछा। परोपकारी मुनि भगवंत ने कहा- “तुम निमित्त वासी हो, आने वाले भव में तुम इसी जंगल में बंदर के रूप में जन्म लोगे। वहाँ शिला लेख पर नवकारमंत्र को देखते ही तुम्हें धर्म बुद्धि प्राप्त होगी।'' मुनि के वचन सुनकर आने वाले भव में उसे जल्दी धर्मबुद्धि जगे इस हेतु उसने उसी जंगल में एक शिला पर नवकार मंत्र लिख दिया। देवायुष्य पूर्ण कर वह देव मरकर बंदर बना। एक दिन जंगल में भटकते-भटकते उसकी नज़र नवकार लिखी शिला पर पड़ी। पूर्व जन्म के संस्कारों से शिला को बार-बार देखने से उसे जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। बंदर के भव में शुभ आराधना कर अंत में अनशन कर पुनः उसने देवगति प्राप्त की। उस देव ने बंदर के भव वाले उसी स्थान पर एक सुंदर जिनमंदिर बनाकर नवकार मंत्र की स्मृति कायम रखी। 2. पोपट बना राजकुमार अयोध्या नगरी में सोमवर्म नामक राजा राज्य करते थे। उनके पुत्र का नाम नंदन था। एक बार राजकुमार नंदन को एक साधक ने स्वयं की साधना में उत्तरसाधक बनने की विनंती की। दयालु राजकुमार ने उसको सहमति दे दी। सहमति मिलते ही साधक योग्य सामग्री इकट्ठी कर श्मशान में जाकर साधना में बैठा। राजकुमार मन में नवकार मंत्र के स्मरण पूर्वक उत्तरसाधक के रूप में उसके पास खड़ा था। थोड़ी देर में वहाँ अग्नि ज्वाला फेंकता हुआ एक राक्षस साधक को मारने आया। परंतु उत्तर साधक
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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