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________________ रात्रि भोजन महापाप हंस और केशव की कथा बात बहुत पुरानी है। कुंडिनपुर नाम की एक नगरी थी। उस नगरी में यशोधर वणिक और उसकी रम्भा नाम की रूपवती पत्नी थी। उनके दो पुत्र थे। एक हंस और दूसरा केशव। यौवन में दोनों भाई एक दिन क्रीड़ा करने गये। कुछ भाग्योदय से उन्हें उसी उद्यान में एक वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ मुनिवर के दर्शन हुए। दोनों भाई वंदना करके अणगार के पास बैठ गये। मुनिराज ने भी दोनों को योग्य समझकर रात्रि भोजन के त्याग के विषय में उपदेश दिया। मुनिराज का उपदेश सुनने के बाद दोनों कुमारों ने रात्रि भोजन के त्याग की प्रतिज्ञा ग्रहण कर ली। शाम को दोनों ने घर आकर माता से कहा - "माँ ... हमें भोजन परोस दो। आज से हम रात्रि में भोजन नहीं करेंगे।" यह बात सुनते ही उनके पिता अत्यन्त क्रोधित हो गये। उसने अपनी पत्नी से कहा - "हमारे कुल में आज तक रात में खाने का रिवाज है। यदि यह रात्रि भोजन न करे तो इन दोनों को दिन में भी भोजन मत देना।" इस प्रकार सात दिन व्यतीत हो गये। दोनों भाईयों के साथ उनकी माता और बहन ने भी भोजन नहीं किया। सातवें दिन पिता ने क्रोधित होकर कहा - "यदि तुम्हें मेरी आज्ञा का पालन नहीं करना हो तो घर से निकल जाओ।" उसी समय केशव घर से निकल गया। चलते-चलते वह जंगल में गया। वहाँ (रास्ते में) एक यक्ष का मंदिर आया। यक्ष ने अनेक प्रकार से उसकी परीक्षा की फिर भी वह चलित नहीं हुआ और यक्ष से कहा- “तुम्हें जो करना हो वह करो, किन्तु मैं रात्रि भोजन नहीं करूँगा।” “कार्यं साधयामि देहं वा पातयामि' यक्ष केशव को प्रतिज्ञा में दृढ़ देखकर प्रसन्न हुआ। उसने पुष्प वृष्टि की और उसे दो प्रकार के आशिष दिये। 1. तुम्हारे चरणों को छुआ हुआ जल दूसरों का रोग मिटायेगा। 2. तुम जो इच्छा करोंगे वह पूर्ण होगी और आज से सातवें दिन तुम राजा बनोगे। साकेतपुर के राजा धनंजय को कोई पुत्र नहीं था। उन्हें चारित्र ग्रहण करने की इच्छा थी। यक्ष केशव को इसी नगर के बाहर रखकर चला गया और उसी रात्री में यक्ष ने राजा को स्वप्न में केशव को राजा बनाने का संकेत दिया। केशव का राज्याभिषेक करके धनंजय राजा ने चारित्र ग्रहण किया। ___ धर्मी राजा आने से प्रजा भी धर्माराधना करने लगी। एक दिन केशव झरोखे में बैठा था, तब उसे अपने पिता यशोधर के दर्शन हुए। पिता के पास जाकर केशव ने कहा - "पिताजी! आप तो करोड़पति थे,
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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