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________________ के महामंत्र की अमोघशक्ति के कारण वह कुछ नहीं कर सका। अंत में राक्षस ने प्रसन्न होकर साधक का कार्य सिद्ध कर दिया। एक दिन राजकुमार ने नगरी में आए हुए अवधिज्ञानी चंदन मुनि को अपने पूर्व भव के बारे में पूछा। तब ज्ञानी मुनिश्री ने कहा " हे राजकुमार पूर्व भव में तुम पोपट थे। उस समय मैंने ही तुम्हें नवकार मंत्र सुनाया था। उसके प्रभाव से ही तुम राजकुमार बने हो । भविष्य में इसी मंत्र की आराधना से तुम मोक्ष को प्राप्त करोगे।" मुनि भगवंत के उत्तर से राजकुमार विशेष श्रद्धा से नवकार मंत्र की आराधना करने लगे। 3. हुंडीक चोर द्वारा नवकार की महिमा मथुरा में शत्रुदमन नाम के राजा राज्य करते थे । एक दिन राजा ने राजमहल में चोरी करते पकड़े हुए चोर को फाँसी की सजा सुनाई। जब हुँडीक को फाँसी की सजा दी जा रही थी तब जिनधर्मानुरागी जिनदत्त सेठ वहाँ से गुजर रहे थे। सेठ को हुँडीक पर दया आ गई। उसका समाधिमरण हो इस हेतु सेठ ने हुँडीक को नवकार महामंत्र के जाप में मन को स्थिर रखने की सलाह दी। परिणाम स्वरूप उसकी मृत्युं सुधर गई। वह वहाँ से व्यंतर देवलोक में उत्पन्न हुआ। इस तरफ राजा ने सेठ को चोर के साथ बात करने के इल्जाम में राजद्रोही घोषित कर उन्हें पूरे नगर में अपमानित कर गधे पर बिठाकर घूमाने की आज्ञा दी। उसी समय हाथ में एक बड़ी शिला लिए हुए एक यक्ष ने राजा की आज्ञा का पालन करते हुए सेवकों से कहा - "सेठ का सम्मान करो, अपमान नहीं, अन्यथा इस शिला से संपूर्ण नगर का नाश कर दूंगा।" इस बात की सूचना राजा को मिलते ही उन्होंने सेठ से माफी माँग कर उनका सम्मान किया। जब राजा ने देव से उसका परिचय पूछा तब देव ने हुँडीक चोर के भव में सेठ द्वारा नवकार मंत्र की साधना सिखाने की बात बताई। नवकार मंत्र की महिमा बढ़ाकर वह अदृश्य हो गया। चुने हुए मोती खोजी, खपी, खाखी :- यह तीन साधुओ के लक्षण है। खोजी : मुझमें कोई दोष न आ जाए। खपी : स्वाध्याय, आयंबिल, जाप का खप । खाखी : निस्पृहता अर्थात् हो तो भी ठीक न हो तो भी ठीक । 072
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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