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________________ प्रतिक्रमण, स्वाध्याय, ध्यान आदि के लिए समय बचा पाओंगे। शरीर एवं मन की स्वस्थता को आमंत्रण मिलेगा। * आत्मा को अनेक पापों से बचा सकोगे। * आप स्वयं पर जैनत्व की छाप (मोहर) लगा पाओंगे। * आप जैन होने के गौरव की अनुभूति करोंगे। हमारी क्लास का समय पूरा होने आया है। उसके पूर्व मैं आपको भोजन करते समय ध्यान रखने योग्य कुछ उपयोगी बातें बताना चाहती हूँ। (1) हाथ धोकर, सभी वस्तु लेकर खाने बैठना। (2) दही-छाछ के तपेले देंककर दाल आदि से अलग रखना। (3) कुत्ते-बिल्ली-कौआ एवं भिखारी आदि की दृष्टि (नज़र) न पड़े वैसे बैठना। (4) खाने के पूर्व साधु भगवंत, साधर्मिक भाई, गाय आदि को देकर भोजन करना। (5) खाने की चीज़ों की अनुमोदना या निंदा नहीं करना। (6) खाते-खाते झूठे मुँह से बोलना नहीं एवं पुस्तक आदि को स्पर्श नहीं करना। (7) दोनों हाथ को झूठा नहीं करना एवं झूठा हाथ तपेली या घड़े में नहीं डालना। (8) खुले स्थान में, खड़े-खड़े, टी.वी. देखते-देखते, चलते-फिरते, सोते-सोते जुते-चप्पल पहनकर भोजन नहीं करना। बल्कि पलाठी लगाकर जमीन पर बैठकर भोजन करना। (9) खाते समय एक भी दाना नीचे न गिरें, इसका ध्यान रखना। गिरे तो तुरंत ही उठा ले। क्योंकि कीड़ी आदि आने की संभावना रहती है एवं अन्न देवता होने के कारण कचरे के डिब्बे में भी नहीं डाल सकते। (10) खाने के पूर्व नवकार गिनकर खाना ताकि खाया हुआ कभी अजीर्ण, रोग, पेट दर्द आदि न हो। (11) कुर्सी पर बैठकर नहीं खाना। अति गरम, अति ठंडा भी नहीं खाना। (12) भोजन स्वादिष्ट हो या फीका हो फिर भी मर्यादित ही करना। (13) भोजन के पूर्व जाँच कर ले कि परमात्मा की आज्ञा विरुद्ध (अभक्ष्य-अनंतकाय) तो नहीं है। (14) एम.सी. वाली बहनों के हाथों का भोजन नहीं करना। (15) क्रोध से रोते-रोते, अप्सेट माइंड से चिंतातुर होकर नहीं खाना। (16) खाने के तुरंत बाद पानी नहीं पीना, सोना नहीं, हार्डवर्क नहीं करना। (17) बार-बार खाना न पड़े, इस प्रकार ज्यादा से ज्यादा तीन बार पेट भरकर ही खाना।
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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