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गई थी। एक छोटी-सी भूल असंख्य जीवों की हिंसा का कारण बन जाती है। यह बात इस सत्य घटना से प्रतीत होती है।
इसलिए इन सब सावधानियों को ध्यान में रखना जरुरी है। जयणा- साहेबजी.! भोजन संबंधी और भी ऐसी कोई ध्यान रखने योग्य बातें हो तो आप हमें बताने की कृपा करें। आज की क्लास सुनकर तो ऐसा लगता है कि आज तक हमने शुद्ध भोजन तो कभी खाया ही नहीं है। भोजन बनाते समय कोई सावधानी रखी नहीं। और न ही खाते समय। इन सबका हमें कितना भारी नुकसान उठाना पड़ेगा है ना साहेबजी.? साहेबजी - हाँ जयणा! रात्रिभोजन, कंदमूल, होटल तथा प्राणिज तत्त्व खाने से निम्न नुकसानों का सामना करना पड़ता है* शरीर रोगी व आलसी बनता है। * मन की पवित्रता घटती है। * नरक गति, अशाता वेदनीय आदि अशुभ कर्म बंधते हैं।
मन में असमाधि होती है। __परलोक में दुर्गति व दुःख की परंपरा चलती है। * तिर्यंच गति में पराधीनता व कत्लखाने में कट जाना पड़ता है। * नरक की अनंत वेदना जघन्य से दस हज़ार वर्ष, उत्कृष्ट से 33 सागरोपम तक भुगतनी पड़ती है।
इन सबसे बचने के लिए तुम्हें Minimumlevel की श्राविका बनना होगा। जयणा - Minimum level की श्राविका बनने के लिए मुझे क्या करना होगा? साहेबजी- *प्रतिदिन प्रभु मंदिर दर्शन/पूजा करना। * योग होने पर व्याख्यान श्रवण अथवा प्रतिदिन आधा घंटा जैनिज़म कोर्स अथवा कोई भी धार्मिक अध्ययन करना। * रात्रि भोजन का त्याग करना। * कंदमूल का त्याग करना। * होटल का त्याग करना। * प्राणिज तत्त्व का त्याग करना। (शिविरार्थियों को संबोधित करते हुए) इन नियमों का ग्रहण कर आप सभी जिनाज्ञा का पालन करें। जिससे