________________
जयणा- साहेबजी.! क्या मुरब्बा गैस पर ही बनता है या धूप में भी बनता है ? साहेबजी- मुरब्बा धूप में भी बनता है। बस शर्त इतनी है कि धूप की छासणी भी तीन तार वाली होनी चाहिए।
अब तीसरी विधि - इस विधि के अनुसार तीन दिन तक नींबू के खट्टे रस में केरी, मिर्च आदि को भीगोकर रखा जाता है। तीन दिन बाद उन्हें 4-5 बार धूप में सुकाकर चुड़ी जैसा कड़क बनाया जाता है। फिर उसमें नमक, तेल, मिर्च, राई आदि डाले जाते हैं। तीनों प्रकार की विधियों में एक बात का खास ध्यान रखना कि इन सब में पानी का अंश रह न जाए। नहीं तो लील-फूग आ जाने से अचार अभक्ष्य बन जाता है। इसके अलावा अचार बनाते समय कुछ असावधानियाँ न हो जाए उसका पूर्णतया ध्यान रखना होगा। जयणा- कैसी असावधानियाँ साहेबजी? साहेबजी- अचार बनाते समय भूल से भी मेथी के दानें, सौंफ, गुड़ या अन्य किसी प्रकार का धान्य नहीं डालना चाहिए। क्योंकि वह अचार दूसरे दिन ही अभक्ष्य बन जाता है। फिर चाहे वह कितने ही शास्त्रीय विधि से क्यों न बना हो। 1.मेथी का अचार उस दिन तो भक्ष्य है परंतु दही के साथ खाने पर द्विदल होने से वह उस दिन भी अभक्ष्य बन जाता है। 2. अचार को काँच की बोतल में ही भरना चाहिए। 3. केरी के अचार पर 2 ऊँगली जितना तेल हमेशा होना चाहिए। 4. बोतल के मुँह पर चार पड़ वाला कपड़ा धागे से बाँधकर फिर उस पर ढक्कन लगाना चाहिए। 5. बोतल से अचार निकालते समय चम्मच और हाथ दोनों साफ एवं सूके होने चाहिए एवं बोतल बंद करते समय भी हाथ सूके होने चाहिए। 6. बोतल से उतना ही अचार निकालना चाहिए जितनी जरुरत हो। क्योंकि बाहर की हवा से अचार खराब हो जाता है। 7. धूप दिए बिना खट्टे रस में बनाया हुआ अचार तीन दिन तक ही भक्ष्य रहता है।
जयणा! एक दिन भोजन के समय कंचन बहन की बहू ने कंचन बहन की थाली में मूंग की दाल के पास मुरब्बा रखा। खाते-खाते कंचन बहन को मुरब्बे में छोटे-छोटे जीव चल रहे हो ऐसा महसूस हुआ। उसने धूप में जाकर देखा तो पूरे मुरब्बे में छोटे-छोटे मुरब्बे के रंग के जैसे जीव चल रहे थे। धूप में मुरब्बे की बोतल को खोलकर देखा तो पूरी बोतल में जीव थे। जीवोत्पत्ति का कारण यह था कि छासणी कच्ची रह