SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हो जाता है। विभिन्न पदार्थों की काल मर्यादा हम निम्न चार्ट द्वारा आसानी से समझ सकते है। जयणा - सचमुच धन्य है प्रभु के शासन को। परमात्मा के ज्ञान को। हमारी छोटी-सी असावधानी भी कितने जीवों के संहार का कारण बनती है। खाना तो बनता ही है परंतु यदि सावधानी पूर्वक बनाए तो शुद्ध बनता है और असावधानी पूर्वक बनाए तो अभक्ष्य हो जाता है। साहेबजी- जयणा! शास्त्रों में नरक में जाने के चार द्वार बताए है - (1) रात्रिभोजन (2) कंदमूल (3) परस्त्रीगमन (4) अचार (अथाणा)। जयणा- क्या 'अचार' खाने से नरक में जाते हैं ? तो फिर मेरी नरक निश्चित है क्योंकि अचार के बिना तो मैं खाना खा ही नहीं सकती। साहेबजी.! क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम अचार भी खाएँ और नरक में भी न जाना पड़े? साहेबजी- हो सकता है जयणा! यदि हम शास्त्रीय विधि से अचार बनाएँ तो वह अचार भक्ष्य होता है। जयणा- अचार बनाने की शास्त्रीय विधि क्या है ? साहेबजी - जयणा! अचार तीन प्रकार की विधि से बनाया जाता है। इन विधियों से सावधानी पूर्वक बनाया हुआ अचार भक्ष्य बनता है। लेकिन उसमें यदि थोड़ी भी असावधानी आ जाए तो भक्ष्य अचार भी अभक्ष्य बन जाता है। इसलिए विधि का बराबर ध्यान रखें। __पहली विधि है - धूप में बना हुआ अचार-इस विधि के अन्तर्गत केरी, नींबू, मिर्ची आदि में नमक डालकर धूप में सुकाया जाता है। पाँच, सात बार सुकाकर जब वह चुड़ी की तरह कड़क बन जाता है तब उसमें गरम करके ठंडा किया हुआ सरसों का तेल, राई, मिर्च, नमक आदि डाला जाता है। इस प्रकार से बनाया हुआ अचार एक वर्ष तक चलता है। अब दूसरी विधि गैस पर बनाने की - इसमें केरी को छिलकर उसके पानी को निकाल दिया जाता है। फिर एक बर्तन में शक्कर डालकर उसे गैस पर रखने के बाद उसमें वह छिली हुई केरी डालकर उसे गरम किया जाता है। जब वह शक्कर पिघलकर तीन तार वाली छासणी के रुप में बन जाए तब उसे गैस से उतारकर ठंडा करने के बाद उसे काँच की बोतल में भर दिया जाता है। जयणा- साहेबजी.! यह तीन तार वाली छासणी क्या होती है ? साहेबजी- छासणी के तार देखने के लिए उसकी एक बूंद को अँगूठे और ऊँगली के बीच में रख कर ऊँगली को धीरे-धीरे ऊपर उठाना। यदि अंगूठे और ऊँगली के बीच में तीन तार निरंतर रहे, बीच में टूटे नहीं तो समझ लेना कि वह छासणी तीन तार वाली पक्की है। उसमें बना हुआ मुरब्बा भक्ष्य बनता है।
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy