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________________ 2. श्रीमति ने नवकार गिनकर घड़े में हाथ डाला, तो घड़े में रहा साँप भी फूल की माला बन गया। 3. शिवकुमार ने नवकार गिना, जिससे मौत के बदले सुवर्ण पुरुष की प्राप्ति हुई। 4. नवकार के प्रभाव से समडी (पक्षी) मरकर राजकुमारी सुदर्शना बनी। 5. नवकार मंत्र के प्रभाव से अमरकुमार के शूली का सिहांसन बन गया। O) नवकार की महिमा . एक छोटी लड़की थी। उसके माता-पिता का बचपन में ही देहान्त हो गया था। वह अपने मामा के घर रहने लगी। मामी उसके पास बहुत काम करवाती थी। मामा को दया आती, फिर भी क्या करें। एक बार महाराज साहेब गाँव में पधारें, मामी ने उपाश्रय में झाडू निकालने के लिए भेजा। महाराज साहेब ने नवकार मन्त्र सिखाया और दुःख में गिनने को कहा। लड़की बड़ी हुई, मामा ने उसकी शादी की। उसकी सास का स्वभाव अच्छा नहीं था। फिर भी वह अपने धर्म-कार्य में अटल थी। वह प्रतिदिन गाय को रोटी देती थी। एक दिन वह गाय को रोटी खिला रही थी। गाय बीमार होने के कारण खा नहीं रही थी। उसने गाय को नवकार सुनाया। नवकार सुनते-सुनते गाय ने प्राण त्याग कर लिये। नवकार के प्रभाव से वह गाय मरकर देव बनी। देव ने उपयोग रखकर देखा कि “मैं कौन से पुण्य से यहाँ आया हूँ"। उसे मालूम हुआ कि नवकार मंत्र के प्रभाव से मैं देव बना हूँ। उसने अपनी उपकारी स्त्री पर उपकार करने के लिए उसे एक स्वप्न बताया कि कल तेरे पति फेक्ट्री जायेंगे तब वापस लौटते समय बीच में एक्सीडेंट होने वाला है, इसलिए उनको जाने मत देना। पत्नी ने पति को जाने से मना किया। लेकिन पति नहीं माना। पत्नी ने घर बैठेबैठे ही पति के हित के लिए नवकार मंत्र का जाप शुरु किया। इस तरफ पति जब घर आ रहे थे, तब सामने आ रही ट्रक से एक्सीडेंट हुआ, लेकिन नवकार मंत्र के प्रभाव से देव जागृत थे। इसलिए देव ने उसके पति को स्कूटर से उठाकर एक तरफ फेंक दिया। स्कूटर चकनाचुर हो गया। लेकिन उसके पति को कुछ नहीं हुआ। वह सही सलामत घर आया। आकर पत्नी से पूछा कि तुम्हें कैसे मालूम पड़ा कि आज यह दुर्घटना होने वाली थी, जिससे तुमने मुझे जाने के लिए मना किया। उसने गाय को नवकार सुनाने से लेकर देव स्वप्न तक की सारी बातें कह सुनाई और जब मेरे रोकने पर भी आप नहीं रुके तब आपके हित के लिए मैंने नवकार का जाप शुरु किया। जिसके प्रभाव से आप बचे हो। इस घटना से पूरे परिवार में उस कन्या एवं नवकार के प्रति आदर भाव पैदा हुए एवं धर्म-ध्यान से पूरा परिवार सुखी बना।
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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