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________________ ॐनमो तवर ही नमो आबरियाण ही नमो चारित्तस्म ॐही नमो नाणस्स अनंत पर्याय, एक समय में सामान्य रूप से देख सकते हैं। 3.अव्याबाध सुख : वेदनीय कर्म के क्षय से सुख में कभी किसी प्रकार की बाधा नहीं आती। 4.अनंतचारित्र: मोहनीय कर्म के क्षय से सिद्ध भगवंत स्थिरता रूप चारित्र में ही रहते हैं। आत्म स्वभाव से विचलित नहीं होते। 5.अक्षय स्थिति: आयुष्य कर्म के क्षय से मोक्ष की स्थिति (काल) कभी क्षय नहीं होती अर्थात् जीव मोक्ष में से पुन: संसार में कभी नहीं आता। 6.अरूपी: नाम कर्म के क्षय से मोक्ष में जीव आकार, रूप, रस, गंध, स्पर्श रहित होते हैं। 7.अगुरुलघु: गोत्र कर्म के क्षय से मोक्ष में आत्मा हल्की-भारी नहीं होती। 8.अनंतवीर्य: अंतराय कर्म के क्षय से मोक्ष में आत्मा स्थिर रहती हैं। इससे अनंतवीर्य लब्धि प्राप्त होती है। (010
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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