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(७) अपायापगमातिशय: प्रभु जहाँ विचरते है, वहाँ 125 योजन तक मारी, मरकी आदि किसी प्रकार का रोग एवं अतिवृष्टि, अनावृष्टि आदि 6 महिने तक नहीं होते।. (10) ज्ञानातिशय: प्रभु केवलज्ञान से भूत-भावि एवं वर्तमान तीनों काल के सर्वद्रव्य के सर्व पर्याय को जानते हैं। (11) पूजातिशय : केवलज्ञान के बाद चारों निकाय के देवता अष्ट प्रातिहार्य की रचना से प्रभु-भक्ति करते हैं एवं 64 इन्द्र तथा जघन्य से एक करोड़ देवता हमेशा प्रभु की सेवा में हाजिर रहते हैं। (12)वचनातिशय : प्रभु की वाणी को देव-मनुष्य-तिर्यंच अपनी-अपनी भाषा में समझकर अपने सर्व संशयों का नाश करते हैं। भव्य आत्माएँ प्रभु के वचनातिशय के प्रभाव से शीघ्र वैरागी बनकर मोक्षाभिमुख बनती हैं। ये 8 प्रातिहार्य + 4 अतिशय = 12 अरिहंत के गुण कहलाते हैं। प्रभु को जन्मसे 4 अतिशय होते हैं
1. प्रभु का खून सफेद होता है। 2. आहार-निहार अदृश्य रूप से होते हैं। 3. श्वासोश्वास कमल के समान सुगंधित होता है। 4. पसीना नहीं होता।
प्रभु के खून का वर्ण सफेद है, क्योंकि जिस प्रकार अपने बालक पर रहे वात्सल्य के कारण माता के स्तन का खून सफेद दूध बन जाता है। उसी प्रकार प्रभु को सर्व जीवों के प्रति अपार वात्सल्य होने से उनका खून सफेद बन जाये तो इसमें आश्चर्य ही क्या है ? अरिहंत प्रभु ने मोक्ष का मार्ग बताया इसलिए उनका नवकार में प्रथम नंबर है। इनके 4 घाति कर्म नाश हो गये हैं।
2. मिन्द : आठों कर्मों का क्षय कर जिन्होंने मोक्ष को प्राप्त किया हो वे सिद्ध कहलाते हैं। जब एक जीव मोक्ष में जाता है तब एक जीव निगोद में से बाहर निकलता है। इनका वर्ण लाल है। क्योंकि आठ कर्मों को इन्होंने ध्यानरूपी लाल ज्वाला से जलाया है।
सिद्ध भगवंतों ने आठ कर्मों का क्षय करके 8 गुणों को प्राप्त किया है। वे इस प्रकार है :1. अनंतज्ञानः ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय से सर्व क्षेत्र एवं सर्वकाल के सर्व पदार्थों को सर्व पर्यायों के
साथ एक समय में विशेष रूप में जान सके ऐसा लोकालोक प्रकाशक केवलज्ञान प्रकट
होता है। 2.अनंतदर्शन: दर्शनावरणीय कर्म के क्षय से विश्व के जीव-अजीव पदार्थों के भूत-भावि के
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