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जैसे काँटा पैर में लगता है। पर आँसू आँख में आते हैं। हाथ काँटा निकालने के लिए पैर के पास पहुँच जाते हैं । मन दत्त चित्त बनकर काँटा निकालने का उपाय बताने लग जाता है। ऐसा क्यों होता है ? तो इसका कारण है कि पैर मेरा है, तो हाथ भी मेरा है, आँख भी मेरी है और मन भी मेरा है। बस शरीर के सभी अंगोपांग के प्रति रहा हुआ हमारा यह अपनत्व का भाव हमें शरीर के एक भी अंगोपांग के दुःख की उपेक्षा करने नहीं देता।
ठीक इसी प्रकार तीर्थंकर प्रभु की आत्मा में सम्यग् दर्शन की प्राप्ति के बाद जगत के सर्व जीवों के प्रति अपनत्व की भावना इतने हद तक बढ़ जाती है कि विश्व के प्राणी मात्र के दुःख को देखकर उनका हृदय करुणा से भर जाता है। जीव मात्र के दुःख को दूर करने के लिए वे कटिबद्ध हो जाते हैं। सम्यग् दर्शन से जीवों की दुःख मुक्ति का एवं अनंत सुख प्राप्ति का सच्चा उपाय जान लेते हैं। फिर सर्व जीवों के प्रति अपार करुणा से वीश स्थानक की उत्कृष्ट आराधना करते हैं। जिससे सर्व जीवों को तारने का उत्कृष्ट सामर्थ्य उन्हें प्राप्त होता है। प्रभु के हृदय में, हर श्वास में, रग-रग में, रोम-रोम में, आत्मा के प्रदेश-प्रदेश में सर्व जीवों को सुखी बनाने का नाद गूंजता रहता है। इससे तीर्थंकर नामकर्म की वे निकाचना करते हैं। _____ अंतिम भव में घाति कर्मों का क्षय कर केवलज्ञान को प्राप्त करते हैं। तत्पश्चात् देव रचित समवसरण में वीतराग प्रभु देशना द्वारा जीवों को तारने का कार्य करते हैं। इतना ही नहीं प्रभु का नाम, प्रभु की मूर्ति एवं प्रभु के जीवन चरित्र का श्रवण भी जीवों के दुःख को दूर करने में समर्थ बनता है। इस प्रकार तीर्थंकर प्रभु सतत इस जगत पर उपकार करते हैं। प्र.: तीर्थंकर प्रभु तो वीतराग है एवं वीतराग होने से वे जीवों को कुछ देते नहीं तो वे जीवों के दुःख को दूर कर कैसे उपकार करते हैं? उ.: आपकी इस बात में कोई सार नहीं है। यह बात बिल्कुल गलत है कि जो वीतराग होते हैं वे कुछ नहीं देते हैं क्योंकि वीतरागता निष्क्रियता का सूचक नहीं है, बल्कि निष्पक्षता का सूचक है। जहाँ राग-द्वेष होता है, वहाँ रागवश अथवा द्वेषवश कोई न कोई पक्षपात हो जाने से सच्चा न्याय नहीं हो पाता। जैसे जो पत्रकार बिना रिश्वत (लॉच) लिए एवं किसी प्रकार के पक्षपात किए बिना सत्य समाचार छापते है। वे ही लोगों में विश्वास पात्र बनते हैं। वैसे ही राग-द्वेष रहित व्यक्ति ही बिना पक्षपात सर्व जगत को सही मार्गदर्शन एवं सच्चा सुख दे सकता है। एक बात खास याद रखने जैसी है कि जैसे अरिहंत प्रभु वीतराग होने से पक्षपात रहित है। वैसे ही करुणा सागर होने से सर्व जीवों के दुःख को दूर करने की भावना वाले भी है, तथा साथ ही अचिंत्य शक्ति एवं प्रचंड पुण्यशाली होने से अपने अतिशय पुण्य से जीवों के मोह का विदारण कर अनंत