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_मेरे परमात्मा प्र.: भगवान किसे कहते है? उ.: जो सभी को सच्चा सुख देते है, उन्हें भगवान कहते है। वैसे तो दुनिया में कई देवी-देवता हैं, सच्चे भगवान कौन हो सकते हैं ? उसकी परीक्षा करनी चाहिए।
आप ही परीक्षा करें ... प्रः जो शस्त्रधारी होते हैं क्या वे भगवान हो सकते हैं? उ.: नहीं .. क्योंकि उनसे तो हमें डर लगता है। शस्त्र द्वेष का प्रतीक है। द्वेषी व्यक्ति हमें सुख नहीं दे
सकता।
प्र.: जो स्त्री को अपने पास रखते हैं क्या वे भगवान हो सकते हैं? उ.: नहीं .. क्योंकि स्त्री राग का कारण है। जो एक से राग करता है, वह सभी को समान दृष्टि से नहीं देख
सकता।
प्र.: तो सब जीवों को सुख देने वाले भगवान कौन हो सकते हैं? उ.: जो राग-द्वेष रहित हो, जिनको देखते ही मन खुश हो जाये, जो हमारे विषय-कषायों को नाश कर हमारा सच्चा हित करें, ऐसे वीतराग प्रभु ही सच्चे भगवान हो सकते हैं। प्र.: वीतराग प्रभु ही सबसे महान क्यों है? उ.: क्योंकि दुनिया के स्वामी जो 64 इन्द्र हैं, वे भी प्रभु के दास बनकर प्रभु की सेवा करते हैं। प्र.: प्रभु की इन्द्रादि देव सेवा क्यों करते हैं? उ.: क्योंकि प्रभु ने पूर्वभव में “सवि जीव करूँ शासन रसी' की अद्भुत भावना से तीर्थंकर नाम कर्म उपार्जित किया था। उस साधना में प्रभु ने सतत सब जीवों को तारने की शक्ति उपार्जित की थी। इन्द्र महाराजा जानते हैं कि इनकी सेवा से ही शाश्वत सुख मिल सकता है। इसलिए इन्द्रादि देव प्रभु की सेवा करते हैं। प्र.: तीर्थंकर कैसे बनते है? उ.: अनंत भव्य आत्माएँ इस संसार में हैं। उनमें से कुछ आत्माओं में ऐसी विशेषता होती है कि वे स्वयं मोक्ष में जाने से पूर्व अनेकानेक आत्माओं को मोक्ष के सन्मुख कर इस संसार समुद्र से तारने का अद्भुत कार्य करती है। वे तीर्थंकर की आत्माएँ होती हैं। उनकी इस विशेषता का मुख्य कारण होता है जीव मात्र के प्रति अनंत करुणा।
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