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* घर में एम. सी. (अंतराय) का पालन पूर्ण रूप से करें।
पूजा के वस्त्र पहनने की विधि * दाहिना कंधा खुला रहे इस रीति से पुरुष खेस पहनें। * पुरुष धोती एवं खेस इन दो वस्त्रों का ही उपयोग करें तथा स्त्रियाँ तीन वस्त्रों का उपयोग करें। * पुरुष मुखाग्र बांधने के लिए रुमाल का उपयोग न करें । खेस से ही नासिका सहित मुखकोश बांधे। * स्त्रियाँ रुमाल से ही मुखाग्र को बाँधे। रुमाल, स्कॉफ जितना मोटा और चौरस रखें। * पूजा के वस्त्रों का उपयोग पसीना पोंछने या नाक पोंछने जैसे कार्यों में न करें। * पूजा के वस्त्रों को स्वच्छ रखें। * अन्य प्रसंगों में पूजा के वस्त्रों को न पहनें। सामायिक में पूजा के वस्त्रों का प्रयोग अयोग्य है। * पूजा के वस्त्र पहनकर कुछ खा-पी नहीं सकते। यदि भूल से भी कुछ खा-पी लिया हो तो फिर पूजा के लिए उन वस्त्रों का उपयोग न करें। * निष्कारण घर से स्कूटर या वाहनों में बैठकर, चप्पल या जूते पहनकर मन्दिर में पूजा करने नहीं जायें। * पूजा के वस्त्र उत्तम किस्म (रेशमी आदि) के हो। रेशमी कपड़े गंदगी को जल्दी नहीं पकड़ते। साथ ही भाव वर्धक होने से पूजा के लिए उत्तम गिने जाते है। इसी हेतु से अंजनशलाका के समय आचार्य भगवंत के लिए भी रेशमी वस्त्र परिधान का विधान है। * घर-गाड़ी-तिजोरी आदि की चाबियों को साथ में रखकर पूजा न करें। हाथ में घड़ी पहनकर पूजा न करें। * पूजा के वस्त्रों, छिद्र वालें, जले हुए अथवा फटे हुए न हो इसका ध्यान रखें। * प्रभु पूजा का अनमोल अवसर प्राप्त होने से अपनी आत्मा में धन्यता का अनुभव करते हुए, प्रभु के गुणों का अहोभाव से स्मरण करते हुए एवं नीचे देखकर ईर्यासमिति का पालन करते हुए मंदिर जायें।
मंदिर जाते समय प्रणिधान 84 लाख योनि में घूम-घूमकर आया। परन्तु कहीं पर भी वीतराग प्रभु के दर्शन नहीं पाये। इस जन्म में मेरा कैसा अहोभाग्य है कि मुझे तीन लोक के नाथ देवाधिदेव के दर्शन मिल रहे है अत: मैं प्रभु के दर्शन शुद्ध चित्त एवं एकाग्रता पूर्वक करूँगा। "श्री तीर्थंकर गणधर प्रसादात् मम एष योग: फलतु"। अर्थात् तीर्थंकर प्रभु एवं गणधर भगवंत की कृपा से मेरे यह (मंदिर जाने रूप) योग सफल बने। ऐसी धारणा कर प्रभु
दर्शन करें। ___ * मंदिर की ध्वजा दिखते ही सिर झुकाकर 'नमो जिणाणं' कहे।
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