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मंदिर का दरवाज़ा बंध हो तो उसे जयणा पूर्वक खोलें।
सीधे नल से पानी लेकर पैर न धोएँ ।
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बाल्टी में रहे, छाने हुए पानी को ग्लास से आवश्यक्तानुसार लेकर पैर धोएँ । मंदिरजी में प्रवेश करने की विधि
मंदिर के मुख्य द्वार पर निसीहि बोलकर प्रवेश करें, निसीहि अर्थात् निषेध यानि कि संसार संबंधित
समस्त बातों का पूरी तरह त्याग करना।
* प्रभुजी पर दृष्टि पड़ते ही दोनों हाथ जोड़कर सिर झुकाकर धीमी आवाज़ में " नमो जिणाणं" बोलते अंजलिबद्ध प्रणाम करें।
* विद्यार्थी अपना बेग तथा अन्य व्यक्तिगत खाने-पीने की चीज़ें बाहर रखकर फिर मंदिरजी में प्रवेश करें ।
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जिन मंदिर में एवं गंभारे में पहले दाहिना पैर रखते हुए प्रवेश करें ।
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यदि मंदिर में बासी काजा न निकाला हो तो पहले बासी काजा निकालकर उसे जयणा पूर्वक परठे । अब आगे आने वाली मंदिर की प्रत्येक क्रिया में विधि एवं जयणा का विशेष उपयोग रखें एवं प्रत्येक क्रिया बहुमान पूर्वक करें ।
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प्रदक्षिणा देने की बिधि
हाथ में पूजा की सामग्री लेकर, नीचे देखकर, जयणापूर्वक धीमी गति से प्रदक्षिणा लगायें।
मधुर स्वर में प्रदक्षिणा के दोहे बोलते हुए प्रदक्षिणा दें।
प्रदक्षिणा नहीं देना या एक ही प्रदक्षिणा देनी या पूजा करने के बाद प्रदक्षिणा देनी यह अविधि है । निम्न चार भावना से प्रदक्षिणा लगाएँ
प्रभु को प्रदक्षिणा देने से मेरे भव भ्रमण मिट जाये।
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ज्ञान-दर्शन- चारित्र रूप रत्नत्रयी की प्राप्ति हो ।
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मंगल मूर्ति के दर्शन होते ही समवसरण में स्थित चतुर्मुखी प्रभु को याद करें।
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जिस प्रकार बालक को अपनी माँ से प्रेम होने के कारण वह सतत अपनी माँ के आस-पास (गोलगोल) घूमता रहता है उसी प्रकार हे प्रभु! मैं भी आपका बालक हूँ। यानि कि प्रभु के प्रति प्रीति को प्र करने के लिए प्रदक्षिणा लगायें।
* इलि - भमरी न्याय से मैं भी प्रभु तुल्य बन जाऊँ ।
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