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9. फिर तीन बार प्रमार्जना करें।(5-3) 10. तत्पश्चात् पंचांग प्रणिपात प्रणाम करें (3/3), भाव पूजा करते समय (4/3) त्रिदिशिवर्जन त्रिक (6-3), आलम्बन त्रिक (7-3), मुद्रात्रिक (8-3) तथा प्रणिधान त्रिक (9-3) का उपयोग रखते हुए चैत्यवंदन करें । अंत में अवस्था त्रिक (10-3) का ध्यान करें।
अंत में घर जाते समय हर्ष का अतिरेक प्रदर्शित करने हेतु घंट नाद करें। अंगपूजा के दौरान स्नात्रपूजा आदि पढ़ा सकते हैं।
पूजा के लिए आवश्यक सात प्रकार की थुद्धि 1.अंगशुद्धिः परात में स्नान कर पानी को जीव रहित सूकी भूमि पर अथवा छत पर जयणा से परठे। 2.वस्त्रशुद्धिःशुद्ध (नये) वस्त्र पहनें। उ.मन शुद्धिःमन को प्रभु के स्मरण में लीन रखें। 4.भूमि शुद्धिः जिस स्थान पर द्रव्य एवं भाव पूजा करनी है वह भूमि हाड़, माँस, बाल, नाखून आदि से रहित शुद्ध होनी चाहिए। 5. उपकरण शुद्धिः थाली, कटोरी, डिब्बी, फूलधानी, कलश, अंगलूछणा एवं मुखकोश आदि उपकरण को धूपाएँ तथा शक्ति के अनुसार उत्तम एवं स्वउपकरण से पूजा करें। 6.द्रव्य शुद्धिः कुएँ का पानी, गाय का दूध, घी, सुगंधित उत्तम धूप, बासमती चावल, शुद्ध घी से बनाया हुआ नैवेद्य एवं उत्तम जाति के फल आदि उत्तमोत्तम द्रव्य से प्रभु पूजा करें। जितना द्रव्य उत्तम होता है उतने ही भावों में वृद्धि होने से फल भी उतना ही उत्तम मिलता है। 7.विधि शुद्धिःसभी क्रिया जयणा एवं उपयोग पूर्वक विधि अनुसार करें।
स्नान करने की विधि * पूर्व दिशा की तरफ मुख रखकर थोड़े पानी से स्नान करें। हो सके वहाँ तक साबुन का उपयोग न करें, यदि करना पड़े तो चर्बी रहित साबुन से स्नान करें। * गीज़र के पानी का उपयोग न करें। यदि गरम पानी से स्नान करना हो तो पानी उतना ही गरम करें, जिससे गरम पानी में ठंडा पानी मिलाना न पड़े। * पानी 48 मिनट में सूक जाए ऐसे स्थान पर बैठकर स्नान करें अथवा परात में स्नान कर, पानी को सूकी जगह पर परठ दें। * स्नान करने के बाद उत्तर दिशा में मुख रखकर पूजा के वस्त्र पहनें।