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________________ 8. मुद्रा निकः (1) योग मुद्रा - दोनों हाथ को कमल की नाल के समान एकत्रित कर पेट को स्पर्श करना एवं दोनों हाथ की अंगुलियों को एक-दूसरे के अंदर डालना। चैत्यवंदन इस मुद्रा में बोलना चाहिए। (2) जिन मुद्रा - काउस्सग्ग के समय दो पैर के बीच आगे से चार अंगुल एवं पीछे से चार अंगुल में कुछ कम जगह छोड़े तथा हाथ को लटकते हुए (सीधे) रखना। (3) मुक्तासुक्ति मुद्रा - छीप की तरह हथेली को पहोली कर ललाट पर लगाना। इस मुद्रा से जावंतिजावंत एवं जयवीयराय की दो गाथा बोली जाती हैं। 9. प्रणिधान त्रिक: मन - वचन - क प्रता रखना। 10. अवस्था त्रिक: (1) पिण्डस्थ - जन्म से लेकर दीक्षा जीवन तक की अवस्था का चिन्तन करना। ..(2) पदस्थ - समवसरणस्थ प्रभु का चिन्तन करना। (3) रूपातीत - सिद्ध अवस्था का ध्यान करना। प्र.: मंदिर में दश त्रिक का पालन किस क्रम से करना चाहिए? उ.: जो प्रथम नंबर दिए गये हैं वे दशत्रिक के मूल भेद के हैं । दूसरे नंबर पेटा भेद के है जहाँ (-) कर तीन नं. दिये है वहाँ तीनों भेद समझना।। 1.. सर्व प्रथम पहली निसीहि बोलकर प्रवेश करें।(1/1) 2. प्रभु का मुख देखते ही अंजलिबद्ध प्रणाम कर नमो जिणाणं बोलें।(3/1) 3. तत्पश्चात् तीन प्रदक्षिणा दें। (2-3) 4. उसके बाद अर्धावनत प्रणाम कर प्रभु की स्तुति बोलें।(3/2) फिर जयणा पूर्वक पूजा की सामग्री तैयार करें। 5. बाद में गंभारे में प्रवेश करते समय दूसरी निसीहि बोलें।(1/2) 6. फिर गंभारे में प्रभु की अंग पूजा करें।(4/1) 7. तत्पश्चात् बाहर आकर अग्रपूजा - क्रमश: धूप, दीप, चामर, दर्पण, पंखा, अक्षत, नैवेद्य तथा फल पूजा करें । (4/2) 8. उसके बाद तीसरी निसीहि बोलें।(1/3)
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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