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इस प्रकार हैं :
1. निमीहि त्रिक:
2. प्रदक्षिणा त्रिक:
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4.
5.
6.
(1) मंदिर के मुख्य द्वार पर-संसार संबंधी पाप त्याग के लिए पहली निसीहि बोलें। (2) गंभारे में प्रवेश करते समय मंदिर संबंधी चिन्ता त्याग हेतु दूसरी निसीहि बोलें।
(3) चैत्यवंदन के पूर्व-द्रव्य पूजा के त्याग हेतु तीसरी निसीहि बोलें।
7.
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(1) रत्नत्रयी की प्राप्ति के लिए।
(2) प्रभु से प्रीत जोड़ने के लिए।
(3) मंदिर की शुद्धि का ध्यान रखने के लिए।
इन तीन हेतु से प्रभु को तीन प्रदक्षिणा लगाते हैं।
प्रणाम क्रिक :
(1) अंजलिबद्ध प्रणाम - प्रभु को देखते ही दो हाथ जोड़कर नमो जिणाणं बोलना।
(2) अर्धावनत प्रणाम - आधा शरीर झुकाकर प्रणाम करना।'
(3) पंचांग प्रणिपात - खमासमणा देना
पूजा त्रिक:
(1) अंग पूजा (जल, चंदन, पुष्प पूजा) इससे विघ्न नाश होते हैं।
(2) अग्र पूजा (धूप, दीप, अक्षत, नैवेद्य, फल पूजा) इससे भाग्योदय होता है।
(3) भाव पूजा (चैत्यवंदन) इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
प्रमार्जना त्रिक:
चैत्यवंदन के पहले भूमि की तीन बार प्रमार्जना करना । त्रिदिशिवर्जन त्रिक:
प्रभु के सिवाय की तीनों दिशाओं में देखने का त्याग करना। वर्णाद त्रिक :
(1) सूत्र आलम्बन - शुद्ध सूत्रों का उच्चारण करना।
(2) अर्थ आलम्बन- अर्थ का चिन्तन करना।
(3) प्रतिमा आलम्बन - प्रतिमा में उपयोग रखना।
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