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________________ करने से प्रभु जैसा बनूँ। ऐसी भावना मन में आने लगती है। प्र.: प्रभु भक्ति विधिवत् करने के लिए क्या करना चाहिए? उ.: जैन धर्म कहता है कि “विनय मूलो धम्मो” यानि धर्म का मूल विनय है। परमात्मा की असीम कृपा एवं अनंत उपकारों से आज हमें मोक्ष का मार्ग मिला है, तो उस मोक्ष मार्ग में आगे बढ़ने हेतु सर्वप्रथम प्रभु की विनयपूर्वक पूजा कर हम प्रभु के आशिष को पायें, जिससे हम संसार में रहकर भी निर्विघ्न रूप से मोक्ष मार्ग में आगे बढ़ सके। प्रभु पूजा को विधिवत् करने के लिए पाँच अभिगम एवं दशत्रिक का ज्ञान होना अति आवश्यक है। ) पाँच अभिगम • अभिगम का मतलब होता है ‘विनय' 1. सचित्त का त्याग- यहाँ सचित्त के उपलक्षण से खाने-पीने एवं अपने उपयोग करने की सर्व सामग्री का त्याग करके मंदिर जायें। यानि जेब में दवा, मुखवास, मावा, मसाला, सिगरेट, छींकणी, सेंट आदि पास में कुछ भी न रखें। भूल से रह गए हो तो उसका उपयोग नहीं करके पूजारी को दे दे अथवा बाहर फेंक दें। तथा बूट-चप्पल आदि भी पहनकर नहीं जा सकते हैं। 2. अचिन्त का अत्याग- जिस प्रकार मंदिर जाते समय अपने उपयोग की वस्तु का त्याग करना चाहिए, उसी प्रकार प्रभु भक्ति के लिए धूप-दीप, अक्षत, नैवेद्य, आदि सामग्री लेकर जाना चाहिए। यहाँ अचित्त के उपलक्षण से प्रभु की पूजा योग्य सर्व सामग्री समझे। देव दर्शन में खाली हाथ नहीं जाये, कुछ नहीं हो तो भंडार में पूरने के लिए रूपये तो अवश्य लेकर ही जायें। 3. उत्तरासन-मंदिर में प्रवेश करते समय पुरुष कंधे पर खेस डालकर एवं स्त्रियाँ सिर ढककर जायें। 4. अंजलि- सर्वप्रथम दूर से ध्वजा दिखने पर एवं मंदिरजी में प्रवेश करते ही प्रभु के दर्शन होने पर दो हाथ जोड़कर मस्तक झुकाकर 'नमो जिणाणं' कहे। यदि सामग्री हाथ में हो तो मात्र मस्तक झुकाकर ही नमो जिणाणं कहे। 5. प्रणिधान- प्रभु को देखते ही सारी दुनिया को भूलकर उनमें एकाग्र बन जायें। आत्मा के प्रदेश-प्रदेश में प्रभु को बिठाएँ। O) प्रभु भक्ति की रीत दशत्रिक से प्रीत... दशत्रिक यानि तीन-तीन प्रकार वाली दश बाते, मंदिरजी में इन दश बातों का ध्यान रखना अति आवश्यक है। इन त्रिक के पालन से आशातना दूर होती है एवं विशिष्ट आराधना होती है। दशत्रिक क्रमश: (105)
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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