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________________ हत्या करने से भला हमें क्या लाभ होगा? अत: जो शस्त्रधारी पुरुष हमारा सामना करें। उसी का वध करना, सभी दृष्टि से उचित हैं। यहाँ चौथे के बजाय पाँचवे चोर के अध्यवसाय में कोमलता अधिक मात्रा में है। अत: नि:संदेह यह पद्म लेश्या का द्योतक हैं। छठे चोर ने कहा- अरे वाह! यह भी कोई बात हुई ? एक तो परायें धन पर डाका डालना, चोरी करना और उसकी हत्या भी कर देना। वास्तव में यह पाप ही नहीं महापाप है। ऐसा भयंकर पाप करने से हमारी क्या दुर्गति होगी। यदि धन ही चाहिए तो छीन लेना चाहिए। हत्या करने से क्या लाभ ? छठे चोर की भावना के अध्यवसाय में अधिकाधिक प्रमाण में कोमलता के दर्शन होते हैं। यही शुक्ल लेश्या का साक्षात प्रतीक है। शास्त्रों में कहा है कि 'मृत्यु के समय जो लेश्या होती है, आत्मा उसी लेश्या की प्रधानता वाले भव में पुनर्जन्म लेती है। ___ लेश्या का अल्पबहुत्व- शुक्ल लेश्या वाले सबसे कम, पद्म लेश्या वाले उससे असंख्य गुण अधिक, तेजो लेश्या वाले उससे असंख्य गुण अधिक, कापोत लेश्या वाले उससे अनंत गुण अधिक, नील लेश्या वाले उससे विशेषाधिक, कृष्ण लेश्या वाले उससे और विशेषाधिक। इस प्रकार क्रमश: एक से एक अधिक है। लेश्या में मन, वचन, काया के योग मूल कारण है। जब तक योग का सद्भाव कायम है तब तक ही लेश्या का भी सद्भाव होता है और योग के अभाव में लेश्या का भी अभाव होता है। प्रश्नोत्तरी प्र.: हम कौन हैं? उ.: हम जाति से आर्य है और धर्म से जैन हैं। प्र.: जैन किसे कहते हैं ? उ.: जिसने राग-द्वेष को जीता है। ऐसे जिनेश्वर की आज्ञा को जो हृदय से स्वीकार करें, उसे पालन करने योग्य माने एवं यथाशक्ति जो पाले। तथा जिस आज्ञा का पालन होता है, उसका हृदय में आनंद माने और आज्ञा का भंग हो जाने पर जो मन में दुःख रखें वह जैन कहलाता है। प्र.: जिनदर्शन क्यों करना चाहिए? उ.: परमात्मा के समान बनने के लिए एवं आत्मा की शुद्धि के लिए। प्र.: प्रभुदर्शन से क्या लाभ है?
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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