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है। वैसे ही इस विश्व का माप 'राज' से मापा जाता है। 'राज' से मापने पर यह विश्व चौदह राज प्रमाण है। इसलिए इस विश्व को चौदह राजलोक भी कहा जाता है।
त्रस नाड़ी राजलोक का माप- यदि कोई बहुत शक्तिशाली देव लोहे का बहुत भारी गोला लेकर ऊपर से अपनी पूरी शक्ति लगाकर नीचे डाले, तब वह गोला नीचे गिरतेगिरते 6 महिने में जितना अंतर काटे, उससे भी असंख्य गुणा बड़ा एक राजलोक है। ऐसे 14 राजलोक की ऊँचाई वाला विश्व है।
इस चौदह राजलोक के मध्य में एक राज चौड़ी एवं 14 राज लंबी एक त्रस नाड़ी है । इस त्रस नाड़ी में त्रस एवं स्थावर जीव रहते हैं। त्रस नाड़ी के बाहर मात्र सूक्ष्म एवं स्थावर एकेन्द्रिय जीव ही रहते हैं, यह चौदह राजलोक तीन लोक में विभक्त है। ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और ति लोक। चौदह राजलोक के बराबर मध्यभाग में ति लोक हैं। उसके ऊपर ऊर्ध्वलोक तथा नीचे अधोलोक हैं । अब हम एक-एक लोक को विस्तार से देखेंगे।
तीन लोक . 1. तिच्छालोक- त्रस नाड़ी के मध्यभाग में समभूतला है, समभूतला से नीचे 900 योजन व ऊपर 900 योजन इस प्रकार कुल 1800 योजन ऊँचाई वाला एवं 1 राज की चौड़ाई वाला ति लोक है । समभूतला के मध्यभाग में गोस्तनाकार (गाय के स्तन के आकार) में.8 प्रदेश 4-4 ऊपर नीचे रहे हुए हैं । यह प्रदेश रुचक प्रदेश कहलाते है। ये प्रदेश अति विशुद्ध है । इसके नीचले भाग के 900 योजन में व्यंतर-वाणव्यंतर देवों के वास है। तथा ऊपर के 900 योजन में ज्योतिष देव रहे हुए है। तथा मध्य भाग में असंख्य द्वीप समुद्र है । जहाँ मनुष्य एवं तिर्यंच रहते हैं।
अधोलोक 2. अधोलोक- अधोलोक में सात नरक, भवनपति तथा परमाधामी देवों के आवास हैं। 14 राजलोक के अंत में सातवी नरक की प्रतर (A) 7 राज चौड़ी है। फिर एक-एक नरक ऊपर की ओर जाते-जाते चौड़ाई घटती जाती है। इस प्रकार नीचे से 7 राज ऊपर जाने पर 1 राज की चौड़ाई वाली प्रतर आती है। यह समभूतला (B) कहलाती है। यह रत्नप्रभा पृथ्वी (पहली नरक) की छत है। समभूतला से नीचे 900 योजन छोड़कर शेष अधोलोक हैं । अर्थात् अधोलोक 7 राज का है । प्रत्येक नरक 1 राज ऊँची है चौड़ाई में सातवी नरक 7 राज की है। शेष छ: नरक क्रमश: 1-1 राज घटती जाती है।