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5. वृत्ति से परिणति बनती है। जब पाप करने का मौका आता है तब अंदर से पाप नहीं करने की आवाज़ और पाप होने के बाद पाप का प्रायश्चित करने की आवाज़ उठती है। उसी का नाम परिणति है।
6. परिणति से अनुभूति होती है। शुभ परिणति के बाद आत्मा के स्वाभाविक गुण का आस्वाद लेना अनुभूति है।
इस प्रकार कर्म एवं कुसंस्कार के नाश से जीव की सांसारिक कहानी खत्म हो जाने से उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कर्म है राजा, कुसंस्कार है रानी । दोनों मर गए, खत्म कहानी ॥
विश्व दर्शन - चौदह राजलोक
भगवान मोक्ष में गये हैं, रात्रिभोजन करने से नरक में जाना पड़ता है, दान- जिनपूजा आदि करने से स्वर्ग में जाते हैं, इत्यादि बातें गुरुदेव के मुख से सुनकर मन में विचार आता है कि यह नरक कहाँ है ? देवलोक कहाँ है ? मोक्ष कहाँ है? कैसे है ? वहाँ कौन जाता है ?
आज के वर्ल्ड मेप में आफ्रिका, अमेरिका कहाँ है ? वह बताया गया है लेकिन नरक, देवलोक, मोक्ष, भरतक्षेत्र, महाविदेह क्षेत्र, मेरु पर्वत आदि कहाँ है उसके बारे में कुछ भी उल्लेख नहीं है। तो क्या यह देवलोक नरक आदि कुछ भी नहीं हैं ? जी नहीं ! आज के वैज्ञानिकों के पास समग्र सृष्टि का ज्ञान नहीं होने से उन्होंने इसका वर्णन नहीं किया है। जैसे कि कोलंबस ने अमेरिका देश को ढूँढ निकाला। तो इसके पहले क्या अमेरिका नहीं था? आज भी कई नये-नये द्वीप मिलते जा रहे हैं तो क्या ये द्वीप पहले नहीं थे ? आज के वैज्ञानिक संशोधन कर रहे हैं लेकिन अभी तक संपूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं कर सके। विज्ञान अपूर्ण है, जबकि प्रभु सर्वज्ञ है, तीन लोक का और तीन काल का ज्ञान उन्हें हैं। उन्होंने अपने केवलज्ञान के प्रकाश में समग्र विश्व का जैसा स्वरुप देखा वैसा हमें बताया हैं। जैसे 14 राजलोक, नरक, देवलोक, सिद्धशीला आदि कई बातें हैं जो 45 आगम में बताई गई हैं।
चौदह राजलोक:
अब हम यहाँ संपूर्ण विश्व का स्वरुप संक्षिप्त में देखेंगे। चित्र में बताई हुई आकृति कमर पर दो हाथ रखकर दो पैर चौड़े करने से व्यक्ति का जैसा आकार बनता है वैसा आकार चौदह राजलोक का है। इस आकृति को शास्त्रीय भाषा में वैशाखी संस्थान कहा जाता है। इसमें मोक्ष, स्वर्ग, नरक, मनुष्य लोक समाए हुए हैं। आप जिस प्रकार मीटर, सेंटी मीटर, फुट, किलो मीटर, माईल आदि माप से किसी वस्तु को मापते
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