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________________ * 3.ऊलोक- समभूतला से ऊपर 900 योजन छोड़कर शेष ऊर्ध्वलोक है। अर्थात् , ऊर्ध्वलोक 7 राज प्रमाण है। जैसे जैसे समभूतला (A) से ऊपर जाते है वैसे-वैसे चौड़ाई बढ़ती जाती है । पाँचवे देवलोक (B) तक पहुँचते चौड़ाई 5 राज की हो जाती है। उसके बाद चौड़ाई घटती-घटती लोकाग्र भाग (C) में 1 राज की हो जाती है । उर्ध्वलोक में 12 देवलोक, 3 किल्बिषिक, 9 लोकांतिक, 9 ग्रैवेयक, 5 अनुत्तर एवं सिद्धशीला है। योजन की जानकारी- 12 अंगुल=1 वेंत, 2 वेंत (24 अंगुल)=1 हाथ, 4 हाथ (8 वेंत)=1 धनुष, 2000 धनुष (8000 हाथ)=1 गाउ, 4 गाउ (8000 धनुष)=1 योजन, 1गाउ=3 कि.मी., 1 योजन=12 कि.मी.। .) अधोलोक . ति लोक के नीचे अधोलोक में 7 नरक हैं। वहाँ संख्याता एवं असंख्याता योजन जितने बड़े नारकी जीवों के रहने के स्थान है। उन्हें नरकावास कहते हैं। ये नरकावास कुल 84 लाख हैं। पापी जीव मरकर नरक में जाते हैं। वहाँ परमाधामियों द्वारा भयंकर दुःख उन जीवों को दिया जाता है। नरकवासी के दु:खों का वर्णन करता हुआ नरक वासी का एक पत्र यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। ) नरकवासी का पत्र । हे ति लोक के मानवियों! ओ भाईओं! यह पत्र मैं नरक से लिख रहा हूँ, तुम तो कुशल होंगे ही। मेरी अकुशलता के समाचार लिख रहा हूँ। तुम सोच रहे होंगे कि अचानक एक नरकवासी यहाँ के मानवों को क्यों पत्र लिख रहा है। तो सुनो भाईओं! मैंने पूर्वभव में मौज-शौक ऐशो-आराम करके अनंत पाप को इकट्ठा किया, जिसके फलस्वरुप मेरी आत्मा को नरक में आना पड़ा। यहाँ के कल्पांत दुःख दर्द को देखकर मुझे आप लोगों की चिंता होने लगी कि आप कहीं थोड़े सुख के लिए अपनी आत्मा को नरक के इस भयंकर दुःख में न डाल दे। इस आशय से मैं यह पत्र लिख रहा हूँ। इसे पढ़कर यदि कोई जीव पाप करने से अटक जाएगा तो मैं समझूगा कि मेरा पत्र लिखना सार्थक हुआ। भाई! आप लोगों से अलग होकर सबसे पहले मैं नरक में रही हुई कुम्भी (बड़े पेट एवं छोटे मुँह वाला घड़े जैसा पात्र) में पैदा हुआ। कुंभी में उत्पन्न होते ही अंतर्मुहूर्त (48 मिनट) में मेरा शरीर कुम्भी से भी बड़ा होकर बाहर गिरने लगा। यह देखकर तुरंत परमाधामी (एक प्रकार के राक्षस देव) दौड़कर आए। भयंकर अंधकार था। फिर भी वे जोर-जोर से चिल्ला रहे थे “पकड़ो-पकड़ो"। कुंभी का मुख छोटा होने से C080
SR No.002437
Book TitleJainism Course Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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