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________________ पुराण एवम् कथा-साहित्य - ___संस्कृत, प्राकृत, एवं अपभ्रंश आदि सभी भाषाओं में जैनों ने विशाल पुराण एवं कथा-साहित्य लिखा है । इसलिए इन सभी पुराण एवं कथाओं का हिन्दी में रूपान्तर विद्वानों द्वारा कर दिया गया है । जैन. पुराण साहित्य केवल पौराणिक कथाओं का ही संकलन नहीं है, किन्तु काव्य की दृष्टि से भी उत्तम रचनाएँ हैं । कितने ही पुराण तो काव्य-चमत्कार की दृष्टि से काफी उत्तम होते हैं । जैन विद्वानों ने हिन्दी पद्य में ही पुराणों की रचनाएँ नहीं की, किन्तु हिन्दी गद्य भाषा में भी पुराणों को लिखा है और हिन्दी गद्य साहित्य के विकास में पर्याप्त योग दिया है । ब्रह्म-जिनदास कृत आदि पुराण, शालिवाहन कृत हरिवंश पुराण (१६९५), नवलराम द्वारा लिखित वर्धमान पुराण (१८२५), खुशालचन्द कृत पद्मपुराणं (१७८३), हरिवंशपुराण (१७८०), व्रतकथाकोश (१७८३), दौलतराम कृत पुण्याश्रव कथाकोश (१७७३), आदि पुराण (१८२४), पद्मपुराण (१८२३), हरिवंश पुराण (१८२९), बुलाखीदास कृत पाण्डवपुराण (१७५४) भट्टारक विजयकीर्ति का कर्णामृत पुराण (१८२६) सेवाराम शाह का शान्तिनाथ पुराण आदि उत्तम एवं उल्लेखनीय रचनाएँ हैं । इसी प्रकार जैन विद्वानों द्वारा लिखा हुआ कथा-साहित्य भी कम नहीं है । अध्यात्म साहित्य अध्यात्मवाद जैन साहित्य का प्रमुख अंग रहा है । आचार्य कुन्दकुन्दन ने सर्वप्रथम प्राकृत भाषा में समयसार एवं षट्पाहुड की रचना करके इस साहित्य की नींव रखी थी । इसके पश्चात् तो जैनाचार्यों ने इस पर खूब लिखा । हिन्दी भाषा में भी इस साहित्य की कमी नहीं है । योगीन्द्र का 'परमात्मप्रकाश तथा दोहा पाहुड अध्यात्म विषय की उच्चतम् रचनाएँ हैं । गीति-काव्य - ___गीति काव्यों में भावना की अनुभूति अधिक गहरी होती है, इसलिए गीति-काव्य भी जैन साहित्य का प्रमुख भाग रहा है । जितने भी हिन्दी गद्य और पद्य साहित्य के विद्वान हुए, उन्होंने गीत, पद, भजन आदि के रूप में थोड़ा बहुत अवश्य लिखा है । कितने ही कवियों ने तो अपनी रचनाओं के आगे गीत शब्द भी जोड़ दिया है । इससे उनके गीति-साहित्य के प्रति अनुराग का पता चलता है । इनमें पूनों का मेघकुमार गीत, सकलकीर्ति का मुक्तावलि गीत, नेमीश्वर गीत, णमोकार फल गीत, आदि उल्लेखनीय हैं । जैन भण्डारों में संग्रहित गुटकों में इन पदों एवं भजनों का खूब संग्रह मिलता है । जिसका अधिकांश भाग अभी तक प्रकाश में भी नहीं आया है । 82 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास
SR No.002435
Book TitleHindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshva Prakashan
Publication Year1992
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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