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काव्य, धर्म-संगीत इनकी वाणी से, कलम से, सितार से निकला उसने धर्म-संकट को टालने में पूरी-पूरी सफलता प्राप्त की । हिन्दी साहित्य के विकास के इतिहास को लिखने वालों ने अनेक जैनेतर भक्त संत और सूफी मत के प्रेमपंथियों का नामोल्लेख किया और उनका पूर्ण परिचय देने की उदारता बतलाई है । परन्तु इनके ही साथी जैन धर्मात्मा-पुरुषों में से, जिनके नाम दो या दस नहीं, सैंकडों उपलब्ध हैं, उनमें से, एक बनारसीदास का नाम केवल उल्लेखित किया । तिस पर हिन्दी जैन साहित्य में तो अतिरिक्त संत अथवा भक्त या धार्मिक साहित्य के अन्य प्रायः सभी विषयों में भी रचनाएँ हुई हैं | इन शताब्दियों में जैनेतर साहित्य जहाँ केवल संत-साहित्य के रूप में ही मिलता है, वहाँ जैन हिन्दी साहित्य में वह विविध विषयक और विविधमुखी है।
हिन्दी में धार्मिक साहित्य के अतिरिक्त जैन विद्वानों द्वारा लिखा हिन्दी साहित्य- पुरातन काव्य, चरित काव्य, प्रबन्ध काव्य, गीतकाव्य, रासा साहित्य, पुराण एवं कथा साहित्य, अध्यात्मिक साहित्य एवं प्रकीर्णक साहित्य आदि श्रेणियों में बाँटा जा सकता है । पुरातन काव्य - ___अपभ्रंश काव्यों को पुरातन काव्यों की श्रेणी में रखा जा सकता है। अपभ्रंश भाषा में जैनों की अपार संपत्ति है जो अन्यत्र नहीं मिल सकती । स्वयंभू का पउमचरिउ तथा रिट्ठणेमिचरिउ (८वीं शताब्दी), पुष्पदंत कृत महापुराण (११ वीं शताब्दी), धवलकृत हरिवंश पुराण वीरकृत जम्बूसामी चरिउ (१०७०) आदि रचनाएँ अपभ्रंश के उच्च कोटि के महाकाव्य हैं । पुष्पदंत का महापुराण" एवं धवल का हरिवंश पुराण, अपभ्रंश की विशाल रचनाएँ हैं जिनके गूढ अध्ययन के पश्चात् अपभ्रंश भाषा की समृद्धि का पता चलता है । ये ऐसी अमर कृतियाँ हैं, जो किसी भी काव्य में अपने महत्त्व के कारण चमकती रहेंगी । परवर्ती हिन्दी साहित्य के विकास में इन रचनाओं ने महत्त्वपूर्ण योग दिया है जिसको किसी भी दृष्टि से ओझल नहीं किया जा सकता । सूरदास, तुलसीदास, जायसी, केशव आदि महाकवि इन रचनाओं से काफी उपकृत हैं, क्योंकि उन्होंने अपभ्रंश काव्यों की शैली को अपने काव्यों में काफी विकसित किया है । चरित काव्य अथवा प्रबन्ध काव्य -
जैन विद्वानों ने हिन्दी में सैकड़ों की संख्या में चरित काव्यों की रचना की है । इन चरित काव्यों में किसी न किसी महापुरुष के जीवन का वर्णन
80 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास