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प्राक्कथन
भारत अध्यात्म-प्रधान देश है। समय-समय पर यहाँ अनेक महापुरुष उत्पन्न हुए जिन्होंने अपने-अपने समय में विशिष्ट प्रतिष्ठा प्राप्त की । कई महापुरुषोंने तो जनमानस पर इतना गहरा प्रभाव डाला कि उन्हें ईश्वर का अवतार मान लिया गया। उनकी पूजा, भक्ति, उपासना आज भी की जाती है। पुराणों में दस एवं चौबीस अवतारों की चर्चा है । यद्यपि उनमें से सभी ने वैसी लोकश्रद्धा प्राप्त नहीं की जैसी श्रीराम और कृष्ण ने प्राप्त की ।
विषय की मौलिकताः- द्वारकाधीश कृष्ण के जीवन की विभिन्न घटनाओं को आधार बनाकर जैन साहित्यकारों ने विपुल साहित्य का, विभिन्न भारतीय भाषाओं में सृजन किया है। यह साहित्य संस्कृत, प्राकृत तथा हिन्दी भाषा में जैन साहित्यकारों और मुनियों ने लिखा है । जैनेतर समाज तथा अधिकांश जैन समाज इससे अनभिज्ञ है । बहुत सारा साहित्य हस्तलिखित ग्रन्थों के रूप में है, जो अभी तक प्रकाशित नहीं हुए हैं । श्रीकृष्ण के ऐतिहासिक, पौराणिक तथा धार्मिक स्वरूप को हिन्दी जैन साहित्य में उद्घाटित करने के लिए स्वतंत्र रूप से अनुसंधान का अभाव - सा है । प्रस्तुत विषय को अध्ययन के लिए चयन करने का उद्देश्य प्रस्तुत साहित्य को प्रकाश में लाना तथा उसमें वर्णित कृष्ण के तीनों स्वरूपों - योगी धर्मात्मा का स्वरूप, ललित मधुर मोपाल का स्वरूप तथा वीर शलाकापुरुष के स्वरूप का विस्तृत अध्ययन करना है ।
भारतीय धर्म और संस्कृति के इतिहास में कृष्ण का व्यक्तित्व विलक्षण व बहुआयामी है । वे एक ओर यदि योगेश्वर हैं तो दूसरी ओर प्रणयलीला में लीन रहनेवाले प्रेमी भी हैं । प्रखर कूटनीतिज्ञ - राजनीतिज्ञ तथा आदर्श सखा, विचारक, गृहस्थ और उपदेशक भी हैं। ऐसा कहा जाता है कि वे सोलहों कलाओं से परिपूर्ण हैं । भारतवर्ष के अधिकांश हिन्दुओं की आस्था है कि श्रीकृष्ण विष्णु के अवतार थे - कृष्णस्तु भगवान् स्वयम् ।" हिन्दी के प्रमुख कवि श्री घनानन्द ने भी कहा हैं कि जो कर्षण के द्वारा पापों का नाश करे वही कृष्ण है । हमारे देश के धार्मिक क्षेत्र में श्रीकृष्ण अपने लोकरंजक व्यक्तित्व के कारण साहित्याकारों, कवियों एवम् जनसाधारण के कण्ठहार रहे हैं । भारतीय साहित्य की तीनों धाराओं जैन, बौद्ध और वैदिक में, उनके जीवन के विविध रूपों की मनोहर झाँकियाँ उपलब्ध हैं ।
• हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप - विकास