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उन्होंने उन वृक्षों के टुकड़े-टुकड़े कर दिये । श्रीकृष्ण के अपूर्व बल से वह उसी क्षण मर गया । श्रीकृष्ण के पेट पर डोरी बांधी जाती थी, अतः वे दामोदर के नाम से भी विश्रुत हुए।
आचार्य जिनसेन ने जमल और अर्जुन को देवियाँ मानी हैं । हरिवंशपुराण" में भी यमलार्जुनोद्धार की कथा निम्न प्रकार से मिलती है ।२
श्रीमद्भागवत् में यमलार्जुनोद्धार की कथा निम्न प्रकार से दी हुई है -
नलकूबर और मणिग्रीव-ये दोनों एक तो धनाध्यक्ष कुबेर के लाड़ले लड़के थे और दूसरे इनकी गिनती हो गयी रुद्रभगवान के अनुचरों में । इससे उनका घमण्ड बढ़ गया । एक दिन वे दोनों मन्दाकिनी के तट पर कैलाश के रमणीय उपवन में वारुणी मदिरा पीकर मदोन्मत्त होकर अप्सराओं के साथ नग्नअवस्थामें जलक्रीड़ा कर रहे थे । उसी वक्त संयोगवश उस ओर नारदजी का आगमन हुआ । नारदजी को देखकर शाप के डर से अप्सराओं ने झटपट अपने-अपने कपड़े पहन लिये, परन्तु इन यक्षों ने कपड़े नहीं पहने । इस पर उनकी निर्लज्जता को देखकर नारदजी को क्रोध
आ गया और उन्होंने उन्हें वृक्षयोनि में जाने का श्राप दिया, ये दोनों एक ही साथ अर्जुन वृक्ष होकर यमलार्जुन नाम से प्रसिद्ध हुए। - वृक्षयोनि में जाने पर भी नारदजी की कृपा से उन्हें भगवान की स्मृति बनी रही । नारदजी ने यह भी कहा कि उनका उद्धार सौ वर्ष पश्चात् भगवान श्रीकृष्ण के चरणों के स्पर्श से ही होगा।
भगवान श्रीकृष्ण ने अपने परम प्रेमी भक्त देवर्षि नारदजी की बात १- (क) तौ. धूलिधूसरं कृष्णं मोसन्मूर्छिन चुचुंबतुः ।। दामोदरेत्यूचिरे च तं गोपा दामबंधनात् ॥
___- त्रिषष्टि. ८/५/१४१ (ख) भव-भावना-गा० २२११-२२१५ २- (क) यशोदया दामगुणेन जातु यदच्छयोदूखलबद्धपादः निपीडयन्तो रिपुदेवतागौ न्यपातयन्तौ जमलार्जुनौ सः
- हरिवंशपुराणं ३५/४५ पृ. ४५३ (ख) एक समै मांषन सवै ।। बाय गयौ हरि आय ।
देषि यसोदा बांधियौ ।। ऊंबल तैदि ढिंकाय ।। जीह समै इक देवता ॥ लेय गई नभ मांहि ॥ हरि वाकू पीमा दई ।। यापि गई भुवत्रयांहि ।
___-हरिवंश पुराण ११५, पृ. ७५ ।
हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वस्प-विकास • 53