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________________ चाणूर को मसल कर मार डाला और बलराम ने मुष्टिक के प्राण मुष्टि प्रहार से हर लिए । इतने में स्वयं कंस तीक्ष्ण खड्ग लेकर कृष्ण के सामने आया । कृष्ण ने खड्ग छीन लिया । कंस को पृथ्वी पर पटक दिया । उसे पैरों से पकड़कर पत्थर पर पछाड़ कर मार डाला । और एक प्रचण्ड अट्टहास्य किया । आक्रमण करने को खड़ी हुई कंस की सेना को बलराम ने मंच का खंभा उखाड़ कर प्रहार करके भगा दिया । वहाँ पर कृष्ण पिता और स्वजनों से मिले । उग्रसेन को बन्धन मुक्त किया और उसको मथुरा के सिंहासन पर फिर से बैठाया । जीवयशा जरासंध के पास जा पहुँची । कृष्ण ने विद्याधरकुमारी सत्यभामा' के साथ और बलराम ने रेवती के साथ विवाह किया। ___ कंस-वध का बदला लेने के लिए जरासंध ने अपने पुत्र कालयवन को बड़ी सेना के साथ भेजा । सत्रह बार यादवों के साथ युद्ध करके अन्त में वह मारा गया । तत्पश्चात् जरासंध का भाई अपराजित तीन सौ छियालिस बार युद्ध करके कृष्ण के बाणों से मारा गया । तब प्रचण्ड सेना लेकर जरासंध ने मथुरा की ओर प्रयाण किया । इसके भय से अठारह कोटि यादव मथुरा छोड़कर पश्चिम दिशा की ओर चल पड़े । जरासंध ने उनका पीछा किया । विन्ध्याचल के पास जब जरासंध आया तब कृष्ण की सहायक देवियों ने अनेक चिताएँ रची और वृद्धा का रूप धारण कर उन्होंने जरासंध को समझा दिया कि उससे भागते हुए यादव कहीं शरण न पाने से सभी जल कर मर गए । इस बात को सही मानकर जरासंध वापस लौटा । जब यादव समुद्र के निकट पहुंचे तब कृष्ण और बलराम की तपश्चर्या से प्रभावित इन्द्र ने गौतम देव को भेजा । उसने समुद्र को दूर हटाया । वहाँ पर समुद्रविजय के पुत्र एवम् भावी तीर्थंकर नेमिनाथ की भक्ति से प्रेरित कुबेर १- त्रिच० के अनुसार प्रथम कंस कृष्ण और बलगम को मार डालने का अपने सैनिकों को आदेश देता है । तब कृष्ण कूदकर मंच पर पहुँचते हैं और केशों से खींचकर कंस को पटकते हैं । बाद में चरणप्रहार से उसका सिर कुचलकर उसको मण्डप के बाहर फेंक देते हैं। २- त्रिच० के अनुसार सत्यभामा कंस की ही बहन थी। ३- त्रिच० के अनुसार पहले जरासंध समुद्रविजय के पास कृष्ण और बलराम को उसको सौंप देने का आदेश भेजता है । समुद्रविजय इस आदेश का तिरस्कार करता है । बाद में ज्योतिषी की सलाह से यादव मथुरा छोड़कर चल देते हैं । जरासंध का पुत्र काल यादवों को मारने की प्रतिज्ञा करके अपने भाई यवन और सहदेव को साथ लेकर यादवों का पीछा करता है । रक्षक देवताओं से दिए गए यादवों के अग्निप्रवेश के समाचार सही मानकर वह प्रतिज्ञा की पूर्ति के लिए स्वयं अग्निप्रवेश करता है । 48 • हिन्दी जैन साहित्य में दृष्ण का स्वस्प-विकास
SR No.002435
Book TitleHindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshva Prakashan
Publication Year1992
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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