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________________ स्पर्श से खुल गए। उसी समय कृष्ण को छींक आई । यह सुनते ही वहीं बन्धन में रखे हुए उग्रसेनने आशिष का उच्चारण किया । वसुदेव ने उसको यह रहस्य गुप्त रखने को कहा । कृष्ण को लेकर वसुदेव और बलराम नगर से बाहर निकल गए । देदीप्यमान शंगधारी दैवी वृषभ उनको मार्ग दिखाता उनके आगे-आगे दौड़ रहा था । यमुना नदी का महाप्रवाह कृष्ण के प्रभाव से विभक्त हो गया । नदी पार करके वसुदेव वृन्दावन पहुँचा और वहाँ गोष्ठ में बसे हुए अपने विश्वस्त सेवक नन्दगोप और उसकी पत्नी यशोदा को कृष्ण को सौंपा । उनको नवजात कन्या अपने साथ लेकर वसुदेव और बलराम वापस आए । कंस प्रसूति की खबर पाते ही दौड़ता आया । कन्या जान कर उसकी हत्या तो नहीं की फिर भी उसके भावी पति की ओर से भय होने की आशंका से उसने उसकी नाक को दबा कर चिपटा कर दिया । गोप गोपीजनों के लाडले ब्रज में वद्धि पाने लगे । कंस के ज्योतिषी ने बताया कि तुम्हारा शत्रु कहीं पर बड़ा हो रहा है । कंस ने अपनी सहायक देवियों को आदेश दिया कि वे शत्रु को ढूँढ निकालें और उसका नाश करें । इस आदेश से एक देवी ने भीषण पक्षी का रूप लेकर कृष्ण पर आक्रमण किया । कृष्ण ने उसकी चोंच जोर से दबाई तो वह भाग गई । दूसरी देवी पूतना का रूप धारण कर अपने विषलिप्त स्तन से कृष्ण को स्तनपान कराने लगी । तब देवो ने कृष्ण के मुख में अतिशय दबाव प्रदान किया । इससे पूतना का स्तनाग्र इतना दब गया कि वह भी चिल्लाती भाग गई । तीसरी शकट रूपधारी पिशाची जब धावा मारती आई तब कृष्ण ने लात लगा कर शकट को तोड़ डाला । कृष्ण के बहुत अधमों से तंग आकर यशोदा ने एक बार उनको ऊँखली के साथ बाँध दिया । उस समय दो देवियाँ यमलार्जुन का रूप धारण कर कृष्ण को मारने आईं । कृष्ण ने दोनों १- त्रिच० के अनुसार देवियाँ आठ दीपिकाओं से मार्ग को प्रकाशित करती थीं । और उन्हीं ने श्वेत वृषभ का रूप धर कर नगर द्वार खोल दिये थे। २- त्रिच० के अनुसार ये प्रारम्भ के उपद्रव कंस की ओर से नहीं, अपितु वसुदेव के बैरी शूर्पक विद्याधर की ओर से आये थे । विद्याधर पुत्री शकुनि शकट के ऊपर बैठकर नीचे खेल रहे कृष्ण को दबाकर मारने का प्रयास करती है और पूतना नामक दूसरी पुत्री कृष्ण को विषलिप्त स्तन पिलाती है। कृष्ण की रक्षक देवियाँ दोनों का नाश करती हैं। ३- त्रिच० के अनुसार बालकृष्ण कहीं चला न जाय इसलिए उनको ऊखली के साथ बाँध कर यशोदा कहीं बाहर गई । तब शूर्पक के पुत्र ने यमलार्जुन बन कर कृष्ण को दबाकर मारना चाह । किन्तु देवताओं ने उसका नाश किया । त्रिच० में गोवर्धन की बात नहीं है। हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वस्प-विकास • 45
SR No.002435
Book TitleHindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshva Prakashan
Publication Year1992
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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