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________________ मथुरा नगर माँग लिया । वही जाकर उसने अपने पिता उग्रसेन को परास्त किया ओर उसको बन्दी बनाकर दुर्ग में द्वार के समीप रख दिया । कंस ने वसुदेव को मथुरा बुला लिया । और गुरुदक्षिणा के रूप में अपनी बहन देवकी उसको दी। देवकी के विवाहोत्सव में जीवयशा ने अतिमुक्तक मुनि का अपराध किया । फलस्वरूप मुनि ने भविष्यकथन के रूप में कहा कि जिसके विवाह में मत्त होकर नाच रही हो उसके ही पुत्र से तेरे पति का एवं पिता का विनाश होगा । भयभीत जीवयशा से यह बात जानकर कंस ने वसुदेव को इस वचन से प्रतिबद्ध कर दिया कि प्रत्येक प्रसूति के पूर्व देवकी को जाकर कंस के आवास में ठहरना होगा । बाद में कंस का मलिन आशय ज्ञात होने पर वसुदेव ने जाकर अतिमुक्तक मुनि से जान लिया कि प्रथम छः पुत्र चरम शरीरी होंगे इसलिए उनकी अपमृत्यु नहीं होगी और सातवाँ पुत्र वासुदेव बनेगा और वह कंस का घातक होगा । इसके बाद देवकी ने तीन बार युगल पुत्रों को जन्म दिया । प्रत्येक बार इन्द्राज्ञा से नैगम देव ने उनको उठाकर भ्रदिलनगर के सुदृष्टि श्रेष्ठी की पत्नी अलका के पास रख दिया । और अलका के मृतपुत्रों को देवकी के पास रख दिया । इस बात से अज्ञात प्रत्येक बार कंस इन मृत पुत्रों को पछाड़ कर समझता था कि मैंने देवकी के पुत्रों को मार डाला । देवकी के सातवें पुत्र कृष्ण का जन्म सात मास के गर्भावास के बाद भाद्रपद शुक्ल द्वादशी को रात्रि के समय हुआ। बलराम नवजात शिशु को उठाकर घर से बाहर निकल गया । घनघोर वर्षा से उसकी रक्षा करने के लिए वसुदेव उस पर छत्र धरकर चलता था। नगर के द्वार कृष्ण के चरण १- दीक्षा लेने के पूर्व अतिमुक्तक कंस का छोटा भाई था । हपु. के अनुसार जीवयशा ने हँसते-हँसते, अतिमुक्तक मुनि के सामने देवकी का रजोमलिन वस्त्र प्रदर्शित करके उनकी अशातना की । त्रिच० के अनुसार मदिरा के प्रभाववश जीवयशा ने अतिमुक्तक मुनि के गले लग कर अपने साथ नृत्य करने को निमंत्रित किया । २- त्रिच० के अनुसार जन्मते ही शिशु अपने को सौंप देने का वचन कंस ने वसुदेव से ले लिया। ३- त्रिच० में सेठ सेठानी के नाम नाग और सुलसा हैं। ४- त्रिच० के अनुसार कृष्ण जन्म की तिथि और समय श्रावणकृष्णाष्टमी और मध्यरात्रि है । ५- त्रिच० के अनुसार देवकी के परामर्श से वसुदेव कृष्ण को गोकुल ले चला । इसमें कृष्ण पर छत्र धरने का कार्य उनके रक्षक देवियाँ हैं । 44 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास
SR No.002435
Book TitleHindi Jain Sahitya Me Krishna Ka Swarup Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshva Prakashan
Publication Year1992
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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