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जैन कथाओ में ये सभी प्रसंग किन-किन रूपों में आए हैं, उन्हीं का अनुशीलन करना हमारा प्रतिपाद्य विषय है । इस संदर्भ में हम सबसे पहले जैन कृष्ण-कथा का स्वरूप तथा रूपरेखा प्रस्तुत कर रहै हैं, तत्पश्चात् कृष्ण के जीवन से संबंधित प्रमुख घटनाओं का विवरण दिया गया है । इन घटनाओं का आधार आचार्य जिनसेन कृत हरिवंश पुराणं तथा खुशालचन्द काला कृत एवं शीलिवाहन कृत हरिवंश पुराण (हिन्दी) है । जैन कृष्ण-कथा का स्वरूपः
वैदिक परम्परा की तरह जैन-परम्परा में भी कृष्णचरित्र पुराणकथाओं का ही एक अंश था । जैन कृष्णचरित्र वैदिक परम्परा के कृष्णचरित्र का ही सम्प्रदायानुकूल रूपान्तर था । यही परिस्थिति राम कथा आदि कई अन्य पुराणकथाओं के बारे में भी है । जैन-परम्परा इतर परम्परा के मान्य कथास्वरूपों में व्यावहारिक दृष्टि से एवं तर्कबुद्धि की दृष्टि से कुछ असंगतियाँ बताकर उसे मिथ्या कहती है और उससे भिन्न स्वरूप की कथा जिसे वह सही समझती है उसको प्रस्तुत करती है । तथापि जहाँ तक सभी प्रमुख पात्रों का, मुख्य घटनाओं का और उनके क्रमादि का सम्बन्ध है, वहाँ सर्वत्र जैन-परम्परा ने हिन्दू परम्परा का ही अनुसरण किया है।
जैन कृष्णकथा में भी प्रमुख प्रसंग, उनके क्रम, एवं पात्र के स्वरूप आदि दीर्घकालीन परम्परा से नियत थे । अतः जहाँ तक कथानक का सम्बन्ध है, जैन कृष्ण-कथा पर आधारित विभिन्न कृतियों में परिवर्तनों के लिए स्वल्प अवकाश रहता था । फिर भी कुछ छोटी-मोटी तफसीलों के विषय में, कार्यों के प्रवृत्ति-निमित्तों के विषय में एवं निरूपणों की इयत्ता के विषय में एक कृति और दूसरी कृति के बीच पर्याप्त मात्रा में अन्तर रहता था । दिगम्बर और श्वेताम्बर परम्परा के कृष्ण चरित्रों की भी अपनी अपनी विशिष्टताएँ हैं । और उनमें से कोई एक रूपान्तर के अनुसरणकर्ताओ में भी आपस आपस में कुछ भिन्नता देखी जाती है । मूल कथानक को कुछ विषयों में सम्प्रदायानुकूल करने के लिए कोई सर्वमान्य प्रणालिका के अभाव में जैन रचनाकारों ने अपने अपने मार्ग लिये हैं ।
जैन कृष्णचरित्र के अनुसार कृष्ण न तो कोई दिव्य पुरुष थे, न तो ईश्वर के अवतार या "भगवान स्वयं । वे मानव ही थे, हालाँकि एक असामान्य शक्तिशाली वीर पुरुष एवं सम्राट थे । जैन पुराणकथा के अनुसार प्रस्तुत कालखण्ड में तिरसठ महापुरुष या शलाका-पुरुष हो गए : चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नव वासुदेव (या नारायण), नव, बलदेव और नव प्रतिवासुदेव । वासुदेवों की समृद्धि, सामर्थ्य एवं पदवी चक्रवर्तियों
40 • हिन्दी जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप-विकास